©इस ब्लॉग की किसी भी पोस्ट को अथवा उसके अंश को किसी भी रूप मे कहीं भी प्रकाशित करने से पहले अनुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें। ©

Thursday 18 October 2012

कुछ तो लगता है

सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

कुछ तो लगता है












त्योहारों से  मुझे अब डर लगता है
बचपन बीता सब कुछ सपना लगता है
अब सब रिश्ते एक छलावा लगता है
छल-बल दुनिया का नियम अब सच्चा लगता है
कौन किसका सबको अब अपना अहंकार अच्छा लगता है
ऊपर उठाना-गिराना अब यही सच्चा धर्म लगता है
खून-खच्चर अब यही धर्म सब को अच्छा लगता है
त्योहारों का मौसम है सब को 'नमस्ते' कहना अच्छा लगता है
दुबारा न मिलने का यह संदेश अच्छा लगता है
अब तो राम-रहीम का ज़माना पुराना लगता है
बुजुर्गों का कहना यह बेगाना लगता है
अब तो मारा-मारी करना अच्छा लगता है
अब तो यही ठिकाना-तराना अच्छा लगता है
अब तो खुदगरजी का जमाना अच्छा लगता है
अब तो गोली-बारी चलाना अच्छा लगता है
नैनो से तीर चलाने का ज़माना अब तो पुराना लगता है
भ्रष्टाचार और घूस कमाना अच्छा लगता है
यह तो बदलते दुनिया का नियम अच्छा लगता है
शोर-शराबा करना अच्छा लगता है
हिटलर और मुसोलिनी कहलाना अच्छा लगता है
हिरोशिमा की तरह बम बरसाना अच्छा लगता है
अब गांधी-सुभाष बनना किसी को अच्छा नही लगता है
शहीदों की कुर्बानी अब तो गुमनामी लगता है
मै आज़ाद हू दुनिया मेरी  मुट्ठी मे कहना अच्छा लगता है
अपने को श्रेष्ठ ,दूसरे को निकृष्ट कहना अब तो अच्छा लगता है
मै हू,मै हू ,मै-वाद फैलाना अब तो अच्छा लगता है
चमन को उजाड़ना अच्छा लगता है
अब तो दुनिया का मालिक कहलाना अच्छा लगता है
चिल्लाना और धमकाना अब अच्छा लगता है
बेकसूर को अब कसूरवार बनाना अच्छा लगता है
न्यायालय मे झूठा बयान देना अच्छा लगता है
अब तो यही फसाना अच्छा लगता है
अब तो यही चिट्ठी बांचना अच्छा लगता है
औरों को सता कर 'ताज' पहनना अब अच्छा लगता है
अब तो झूठ को सच कहना अच्छा लगता है
दिलों पर ठेस पहुंचाना अच्छा लगता है
किसी ने कहा-क्या यह शर्म नहीं आती
यह सब करना क्या अच्छा लगता है?

(पूनम माथुर)


8 टिप्‍पणियां:

  1. आजकल तो यही सब है ..... समसामयिक पंक्तियाँ
  2. सुन्दर प्रस्तुति |

    शुभ-दीपावली ||
  3. कौन किसका सबको अब अपना अहंकार अच्छा लगता है
    सच है!
  4. उलट चाल चल रही दुनिया में ऐसा होना ही था. बढ़िया कविता.
  5. आईये इस दिवाली पर इन सब अच्छा लगने वाली बातों को तिलांजलि दे दी जाये ।

    दिवाली की शुभकामनायें ।
  6. बढ़िया कविता..** दीप ऐसे जले कि तम के संग मन को भी प्रकाशित करे ***शुभ दीपावली **
  7. झूठ को सच कहना और सच को झूठ...बहुत कुछ समेटे हुए आज के समय की कविता है ..
    आपको और आपके परिवार में सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
  8. आपको और आपके परिवार को हम सभी की ओर से दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.

Saturday 6 October 2012

भगवान् का मंदिर

बृहस्पतिवार, 17 फरवरी 2011

भगवान् का मंदिर

लेखिका-श्रीमती पूनम माथुर

यह संसार भगवान का सबसे सुन्दर मंदिर है.हम सब (प्राणी और वनस्पति जगत)उस मंदिर क़े नस और नाडी हैं.अगर हमें उस मंदिर की सेवा करनी है तो हमें अपने माता-पिता और सभी जनों को सुखी और खुश रखना होगा.प्रत्येक प्राणी क़े दुःख -दर्द को समझना होगा.पर्यावरण और वातावरण को भी शुद्ध रखना होगा.
प्रभु ने हमें बेशुमार दौलत दी है जैसे-स्वास्थ्य,शरीर,धन,परिवार,समाज,राष्ट्र सब कुछ दिया है.अगर हम उसे देखना चाहते है,उसे समझना चाहते हैं,अपने अन्दर उसे पाना चाहते हैं तो हमें उसके लिये कुछ करना भी चाहिए.इसलिए हमें उसकी बनाई हुई दुनिया या सृष्टि में दया और प्रेम का भाव भर देना चाहिए.तभी हम सही अर्थों में परमात्मा की स्तुति कर पायेंगे और अपने को धन्य समझ सकेंगे.तभी इस दुनिया से हिंसा का नामोनिशान मिट पायेगा.तब संसार स्वर्ग की तरह हो जायेगा.

तब  हम शांति और सद्भाव,दया और प्रेम उसके बनाए मंदिर में लगातार प्राप्त करते रहेंगें.  मानवता तभी ऊपर उठेगी जब न जाति-पति का भेद-भाव हो और न धर्म का बंधन,न कोई उंच और न कोई नीच हो,न कोई बड़ा न कोई छोटा,न कोई गोरा न कोई काला का भेद.

सब में एक ही परम-पिता समाया हुआ है चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारो .न कोई उसका धर्म है न कोई उसकी भाषा न जाति.उसकी तो बस एक ही भाषा और धर्म है,प्यार-दया और प्रेम की भावना.
हमें परमात्मा क़े इस वरदान को यूँ ही नहीं गवाना चाहिये.इस वरदान का हम सभी स्वागत करें  जो हमें लगातार शान्ति सद्भाव को आशीर्वाद क़े रूप में प्रदान करता रहता है.भगवान् की बनाई हुई इस प्यारी सी दुनिया को हम हरा-भरा रख कर सुख-समृद्धी से भर सकते हैं,मानवता और एकता क़े बंधन में जोड़ कर.क्योंकि मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है.जन-कल्याण की भावना की ज्योत अपने अन्दर जगाएं.यही सच्चे अर्थों में इस भगवान् क़े मंदिर की सबसे बड़ी पूजा होगी. 
 _______________________________________________

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत नेक विचार ।
    कलयुगी मानव को सदाचारण की बहुत ज़रुरत है ।
    आभार इस लेख के लिए ।
  2. उत्तम विचार, इन्सान एक्चुअली इसी भंवर में फसा रह जाता है !
  3. उत्तम विचार
  4. बहुत सार्थक और सकारात्मक विचार हैं....सभी के लिए अनुकरणीय.....
  5. यह संसार एक मंदिर है।
    सब में एक ही परमपिता समाया हुआ है।
    प्यार, दया और प्रेम की भावना ईश्वर का वरदान है।

    ये श्रेष्ठ विचार सभी के मन में प्रस्फुटित हों।
  6. namaste mam,
    maine apka blog padha, ye nishchit hi ek shandaar blog hai. aapke jitana to nahi par ek choti si koshish maine bhi ki hai blog likhane ki. waqt nikal kar use bhi ek baar dekhane aur us par comment dene ka prayaas karen
    journalistkrati.blogspot.com

तुम चाहो तो ......

बृहस्पतिवार, 30 दिसम्बर 2010

तुम चाहो तो ......

[श्रीमती पूनम माथुर,द्वारा]

तुम चाहो तो,घृणा को प्यार में बदल दो.
तुम चाहो तो,दुःख को खुशी में बदल दो..
तुम चाहो तो,वीराने को बहार  में बदल दो.
तुम चाहो तो,पतझड़ को बसंत में बदल दो..
तुम चाहो तो,हैवान को इन्सान में बदल दो.
तुम चाहो तो, गरीबी को अमीरी में बदल दो..
तुम चाहो तो,मौत को ज़िंदगी में बदल दो.
तुम चाहो तो,अन्धकार को प्रकाश में बदल दो.
तुम चाहो तो,अज्ञानी को ज्ञानी में बदल दो...

6 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन में जहाँ चाह होती है वहाँ राहें खुद ब खुद बनती चली जाती हैं.प्रेरणादायक बहुत ही अच्छी कविता .
    पूनम जी इस कविता के प्रकाशन हेतु बधाई और हमने तो पहली बार पढ़ी है इसलिए यहाँ प्रकाशित करने के लिए विजय जी आप का आभार.
  2. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
  3. काश! यह चाह जनजन के हृदय में उत्पन्न हो!!
  4. बहुत प्रेरणात्मक कविता ।
    सुन्दर प्रस्तुति ।
  5. प्रेरणादायक बहुत ही अच्छी कविता | हार्दिक बधाई।


नोट:-यह कविता प्रथम बार ब्रह्मपुत्र समाचार,आगरा क़े २२जन्वरी ०४ _०४ फरवरी २००४ ,अंक में प्रकाशित हुई थी.आज की परिस्थितियों में भी इन्सान की ताकत का एहसास कराती इस कविता को पुनः प्रकाशित करना उचित लगा.

Clinging to Delusion in Soltitude

शनिवार, 25 दिसम्बर 2010

Clinging to Delusion in Soltitude

                                                            [By Shaily Sahay]


Some where in the midst of Darkness
I was lost
Alone Alone in the mob
Howling and Shouting for  existence and
attention 
My prayers and pleas echoed in that 
Big      arena,
Lost,unheared,unnoticed   and   ignored 
in   Vioelence,
Apparently, in  that feggy  season 
 Some  one unknown,held my  hands 
Which  were  stuiched  out  for  help
 we  sailed  through   the   crowd,
Some where, Some where   away  from  that
lost  world
My  angel led  me   to  the  door  from
where  brightness  of  light  piered
My  eyes ,slowly it  enlightened

My dreams,   I started living  my
dreams, trying to  make  there  true
Approaching     with   passion  and
leest   towards  the  door ,     I wished
to  cross  it  , before  ,before  .....
I   was  bowed    down
Alas  !  The Angel  was  lost ,the  door
was  closed   for ever   and   ever .
Emptiness  gazed, Silence  prevailed
every  where ,

I  ,I   was  sturned  and  lost  again ,
I  am  lost  till   now  ,
Clinging  to  the  delusion  that  the
angel   will   come   again.......

(शैली अपनी बुआ श्रीमती पूनम माथुर क़े साथ)

(इस कविता की हस्तलिखित प्रति जो शैली ने पूनम को भेंट की थी )

शैली सहाय (सुपुत्री श्री राजीव रंजन सहाय एवं श्रीमती सविता सिन्हा) मेरी पत्नी की  बड़ी  भतीजी है जो अब तो Mass  Comunication क़े द्वितीय वर्ष में है,परन्तु उसने यह कविता उस समय सन २००८ ई.में लिखी थी जब इन्टर मीडीएट की छात्रा थी. वस्तुतः उसके यहाँ बर्तन मांजने वाली की बेटी को धर्माचार्य जी क़े आश्रम द्वारा संचालित पटना क़े स्कूल में फ्री शिक्षा हेतु कम्पटीशन में सफल रहने क़े बावजूद वायदे क़े अनुसार एडमीशन न मिलने पर शैली क़े मस्तिष्क पर जो प्रभाव पड़ा;उसी की प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति है यह कविता.

आज क्रिसमस क़े अवसर पर जब सान्ताक्लाज़ द्वारा गरीब बच्चों को उपहार देने की चर्चा होगी तो हमारे देश क़े पूज्य धर्माचार्य जी का चरित्र -चित्रण करती यह कविता पुनः प्रकाशित करना मैंने अपना कर्त्तव्य समझा.इससे पूर्व इसी कविता को "जो मेरा मन कहे" पर यशवन्त द्वारा भी प्रकाशित किया गया था.
क्या इनकम टैक्स की बचत हेतु धर्माचार्यों को धन देने वालों  द्वारा उनके इस आचरण की ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है अथवा नहीं ?

3 टिप्‍पणियां:

  1. माथुर साहब!
    बच्ची की इस कविता पर मेरी पूरी पोस्ट क़ुर्बान!! यह सम्वेदनाएँ हम अपनी आने वाली को दे सकें, तो देश का भविष्य स्वर्णिम हो पाएगा. आज्ञा देंगे तो इस कविता को एक नज़्म की शक्ल में ढ़ालना चाहुँगा!!
  2. सलिल जी,
    नमस्ते!
    आप बडे शौक और पूरे अधिकार के साथ् इस बच्ची की कविता को जैसे चाहें नज्म मे ढाल सकते हैं और बच्ची को अपना आशीर्वाद देने की कृपा करें.
  3. जाने कितनी ही प्रतिभाएं अवसर न मिलने की वज़ह से अंधकार के गहरे सागर में विलुप्त हो जाती हैं ।
    शैली की यह कविता मर्मस्पर्शी है और सोचने पर मजबूर करती है ***************************************************************
  4. From: bihari blogger <chalabihari@gmail.com
  5. Date: 2010/12/31
  6. Subject: कविता का अनुवादTo: Vijai Mathur <vijai.jyotish@gmail.com>
  7. माथुर साहब,
    अपने सामर्थ्य के अनुसार शैली जी की अंग्रेज़ी कविता का अनुवाद एवम् रूपांतरण करने की चेष्टा की है.
    कृपया देख लें कहाँ तक सफल हो पाया हूँ. कोशिश की है कि मूल कविता की आत्मा अक्षुण्ण रहे:



    नीम तारीकी के बीच इक रोज़ मैं

    गुम हो गया इक भीड़ में

    बस चीखता, चिल्लाता, लोगोंको बुलाता

    खोजता था मैं वजूद अपना, जो गुम था.



    हर दुआ मेरी, युँही बस गूँजती थी

    कोई सुनवाई नहीं थी,

    और कोई ध्यान भी देता नहीं था.



    धुंद के मौसम में तब

    चुपचाप एक अनजान ने

    थामी मेरी बाहें

    लिये मुझको,

    निकलता वो गया उस भीड़ से.



    अनजान और बेहिस से उस माहौल से

    पहुँचा दिया उस दर पे मुझको उस फ़रिश्ते ने

    जहाँ था रौशनी का एक दरिया बह रहा

    आँखों को मेरी कर रहा रौशन.



    वहाँ थे ख़्वाब मेरे..

    मैं लगा ख़वाबों को जीने

    सच उन्हें करने

    इसी ख़्वाहिश में मैंने

    जोड़ ली इक और ख़्वाहिश

    पार कर लेने की उस दर को

    मगर इसके क़बल कि लाँघता दहलीज़ मैं

    था वो फ़रिश्ता जा चुका

    और बंद थे दर रौशनी के

    बस वहाँ पसरा हुआ था

    एक ख़ालीपन

    और इक ख़ामोशी चारों ओर थी बिखरी पड़ी बस!!
    ****************************************************************************

    आशीष बनाए रखें.

    सलिल

शांति

शनिवार, 11 दिसम्बर 2010

शांति


श्रीमती पूनम माथुर 
 ''शांति",  तुम कहाँ हो ?अरे शांति तो दिखाई ही नहीं पड़ती है.हम सभी की प्रिय शांति किधर चली गई?सभी घर वाले अधीर हैं.
तुमने मेरी शांति को देखा है?अरे भाई कहाँ गई,वो ,उसी को तो हम सभी ढूंढ रहे हैं.पहले उसके रहने से हमारे घर -संसार में काफी शांति और हंसी -खुशी का माहौल था.हमारा घर हँसता -मुस्कराता था,परन्तु न जाने शांति किधर चली गई ?ढूंढते ढूंढते हम सभी थक गये हैं.परन्तु शांति कहीं दिखाई ही नहीं देती है.अब तो जीना मुश्किल हो गया है.अब उसके बगैर हम सभी कैसे ज़िंदगी गुजारेंगे.बड़ा सूना सा घर लगता है.किसी कम में मन ही नहीं लगता है.
न कुछ खाने की इच्छा होती है,न पीने की.ज़िंदगी बेकार सी हो गई है.कहीं भी मन नहीं लगता है.इतनी बड़ी दुनिया में शान्ति को कहाँ से ढूंढ कर ला पायेंगे.अब हम सभी की राय है कि अखबार और टी .वी .में इश्तहार दिया जाये ,शांति का पता  बताने वाले को ५०००० रुपया इनाम दिया जाएगा .इस विषय पर चर्चा हो ही रही थी कि किसी ने दरवाज़ा खटखटाया.
"आप अपनी शांति की तलाश कर रहे हैं न ?
"कहाँ है मेरी शांति ......I  जल्दी बताइये ."
तभी उस सज्जन ने कहा -आप अगर शांति को ढूंढते रहोगे ,तो शांति कहीं नहीं मिलने वाली.आप अपने मन क़े अन्दर झांक कर देखें,आपकी शांति वहीं मौजूद है.बस देखने और समझने भर की तो बात है .आप सभी अपने कर्त्तव्य बोध को जानें और समझें.परिवार में सामंजस्य बनायें .एक दूसरे क़े प्रति श्रद्धा और विश्वास व नम्रता का भाव अपनाएं.नफरत त्याग दें.अपने -अपने काम पर सभी लग जाएँ.एक दूसरे की गलतियों पर ध्यान न दें.सही गलत की पहचान कराएँ.बड़ा बड़े की तरह रहे और छोटा ,छोटे की तरह रहे.सभी अपने अधिकार और कर्तव्यों को समझें.तब देखिये,आपके घर में अपने -आप फिर से शांति का प्रवेश हो जायेगा.फिर से शांति छा जायेगी.
आकाश को देखें,सूरज क़े कार्य में कोई व्यवधान नहीं डालता है,चाँद अपनी चांदनी बिखेरता है,तारे टिमटिमाते और चमकते हैं,वायु,जल सभी को सामान्य रूप से प्रकृति प्रदान कर रही है.वहां कोई अव्यवस्था नहीं है.प्रकृति क़े कार्यों में कोई छेड़ -छाड़ नहीं कर रहा है.तब देखिये ,कैसी शांति है.
शांति क़े आभाव में ही तो विश्व भर में तूफ़ान मचा हुआ है.खून -खराबा ,मार -काट ,लूट -पाट ,चोरी -डकैती ,चारों तरफ हा-हा--कार मचा हुआ है.
अगर सभी को सामान्य जीवन जीने का हक मिल जाये तो फिर विश्व शांतिमय हो जाएगा.खैर आप अपने परिवार में अच्छी शरुआत करें.फिर शांति ही शांति है.







6 टिप्‍पणियां:

  1. सचमुच , शांति के साथ जीना तो सब चाहते हैं । लेकिन शांति कहाँ मिलेगी , कैसे मिलेगी , यह नहीं जानते ।
    आपने सही तरीके बताये हैं । सारगर्भित लेख ।
  2. परस्पर सद्भाव और श्रद्धा से ही शांति मिल सकती है।
    प्रेरक आलेख के लिए धन्यवाद।
  3. सच में शांति की शुरुआत खुद से ...अपने घर से ही करनी होगी.... सार्थक विचार
  4. आपस में सप्रेम रहने से ही शांति मिल सकती है| प्रेरणा दायक लेख|
  5. आपने सही कहा है वैसे भी जो कोई भी मन में खोजेगा शांति उसे अवश्य मिलेगी....बहुत ही उम्दा लिखा है...बधाई...हेमाभ अब ठीक है...
  6. सत्य कहा आपने...
    विचारणीय आलेख...
    बहुत बहुत आभार सांझा करने के लिए...



विशेष:-यह लेख २२ मई २००३ से २८ मई २००३ क़े ब्रह्मपुत्र समाचार आगरा में पूर्व प्रकाशित हो चुका है

मिल गई

बुधवार, 17 नवम्बर 2010

मिल गई




(लेखिका ---श्रीमती पूनम माथुर )

आज पडौस में काफी रौनक है ,क्या बात है?हर कोई एक दूसरे से पूछ रहा ,ऐसा लगता है कि जैसे पडौसी क़े घर में कोई लाटरी निकल आयी हो;कल तक तो सारे क़े सारे लोग उदास थे .परन्तु आज अचानक ये कैसा परिवर्तन हो गया है .
सभी हैरान हैं ,परन्तु पूछने क़े लिए तो हिम्मत  जुटानी पड़ती है. कल तक तो उनके घर में रोटी -दाल क़े लिए भी कशमकश था .जब  से उनकी सरकारी नौकरी छूटी ,उन्होंने कई जगह अपना भाग्य आजमाया ,लेकिन कहीं भी सफल नहीं हो पाए .शायद पूंजी की कमी बार -बार सामने आती थी ,परन्तु आज ये कैसा बदलाव आ गया .बड़ी मुश्किलों में बेचारों ने अपने घर को बचाए रखा था .मियां -बीबी ,दो बच्चे और बूढ़ी विधवा माँ ,महंगाई दिन पर दिन बढ़ती चली जा रही थी .बेटी का अचानक आपरेशन ,माँ की अस्थमा की बीमारी .सभी का लालन -पालन ,पढ़ाना-लिखाना ,मियां -बीबी पर क्या बीतती होगी ?बड़े कठोर परिश्रम में उन्होंने अपने घर को हर आंधी -तूफ़ान से बचाया है.कालोनी में उनका मेल -जोल समयानुसार था. उनके घर में हमेशा तन्गी रहती थी ;परन्तु उनमे गज़ब का धैर्य था . घर वाले कभी -कभी तो हताश हो जाते थे ,परन्तु निराशा उनके सामने नहीं आ पाती .उन्होंने अपनी हिम्मत और अन्दर की शक्ति से दुनिया में लड़ाई लड़ी और उसके ऊपर विजय पायी है. कभी भी हार  कर वे उदास नहीं होते थे और हमेशा अपने चित्त को शान्त रखने की बात किया करते रहे ताकि घर वालों को हिम्मत मिलती रहे .दिखावा तो नहीं करते थे ,लेकिन ईश्वर में उन्हें अटूट श्रद्धा  और  विश्वास था,इसी विश्वास क़े आधार पर वे दुनिया से टक्कर ले लेते थे .अपने लालन -पालन की प्रक्रिया में उन्होंने पुराने युग और आधुनिकता की अच्छाईयों को समेटा था और बुराईयों को भले ही किसी भी काल से सम्बंधित हों ,को नहीं अपनाया .सिगरेट  -तम्बाकू से बहुत दूर थे ,अपने बच्चों को धैर्य और लगन की शिछा दिया करते थे .दुनिया की चकाचौंध से दूर रहने को कहा करते थे .अगर इंसान में हिम्मत है तो वह बड़े से बड़ा काम चुटकियों में भी कर सकता है. बच्चों को उनकी शिक्षा  का फल प्राप्त हुआ .वे हमेशा अपने माता -पिता क़े बताये हुए रास्ते पर ही चला करते हैं ताकि उन्हें सफलता प्राप्त होती रहे.
आज उसी का परिणाम तो उन बच्चों को मिला है. सच्ची सीख और सच्चे आचरण क़े आधार पर वे बच्चे कामयाब हो गए हैं ,उन्हें भी काफी खुशी है. कुछ लोगों ने आकर पूंछा आज आपके घर में क्या बात हुयी है?कोई लाटरी निकल आयी है. आज आप खुश नजर आ रहे हैं. तो उन्होंने जवाब दिया भैया आज हमारे बेटे को नौकरी मिल गई है;वह भी I .A . S . की .वर्षों की मेरी तपस्या सफल हुयी हैउनकी आँखों से आंसू निकल पड़े .
सभी ने कहा धैर्य और मेहनत का फल आज अपने आप मिल गया.


(यह कहानी २००३ में लिखी थी जो ५ -११ जून क़े ब्रह्मपुत्र समाचार , आगरा में प्रकाशित हुयी थी ;आज जब आपा -धापी चल रही है इसका महत्त्व ज्यों का त्यों बना हुआ है .अतः यहाँ पुनः प्रकाशित किया जा रहा है .इससे पूर्व उनकी एक और कहानी - "मानवता की सेवा " इसी ब्लॉग में प्रकाशित हो चुकी है ,वह भी मानवीय संवेदनाओं पर आधारित है. )     
 
 

4 टिप्‍पणियां:

  1. मानवीय संवेदनाओं पर आधारित सही शिक्षा देती कहानी|
  2. सुन्दर शिक्षापरक कहानी बहुत पसन्द आयी।
  3. कहानी काफी समय पहले लिखी गयी गयी है पर सदैव प्रासंगिक रहेगी...... जीवन मूल्यों को समझाती एक सुंदर रचना .....
  4. जोशी जी ,वंदना जी,मोनिका जी ,
    आप सब लोगों को मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद .
    ------
    पूनम

मानवता की सेवा

रविवार, 3 अक्तूबर 2010

मानवता की सेवा

लेखिका-श्रीमती पूनम माथुर
इंसान भगवान को ढूँढता है.परन्तु असल में भगवान कहाँ छुपा हुआ है,किसी को पता नहीं है.परन्तु भगवान तो प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर समाया हुआ है.प्रसिद्ध साहित्यकार राजा राधिका रमण की कहानी -''दरिद्र नारायण'' में राजा भगवान की खोज करता है.ताज उसके सिर पर बोझ या भार हो चला है.मंदिर,जंगलों,कहाँ-कहाँ नहीं उसने भगवान को ढूँढा पर भगवान उसे प्राप्त नहीं होते हैं.महर्षि के आश्रम में जब वह जाता है,भगवान की खोज करता है तो उसे महर्षि के आसन पर एक काला कलूटा कंकाल वही भिखारी बैठा दिखाई देता है जिसे उसके सिपाहियों ने पीटा था यह कह कर कि राजा की सवारी निकल रही है और तुमने अपशकुन कर दिया.

जब राजा ने उसे वहां बैठा हुआ देखा तो राजा के दिमाग में यह बात आई कि सच्ची प्रार्थना ,सच्ची पूजा,सच्ची सेवा तो मानवता की करनी चाहिए.सेवा दीन-हीन व्यक्तियों की करनी चाहिए.तभी नर में नारायण के दर्शन होंगे.अगर अपने अन्दर मानव की सेवा  करने की भावना है तो आप परमात्मा के सच्चे सेवक हैं.वही परमात्मा की सेवा है.प्राणिमात्र से प्यार करो,घृणा के भाव को ख़त्म करो ,ईर्ष्या द्वेष को मिटा दो.  

इस शरीर रूपी मंदिर में परमात्मा स्वंय आ जायेगा.कबीर जी कहते हैं स्वयं को पहचानो,अपनी जांच स्वयं करो तब और जब आप स्वयं ऐसा करने में सफल हो जायेंगे तो स्वतः ही आप अपने उद्धारक बन जायेंगे.अगर संसार का प्रत्येक प्राणी इन विचारों से ओत प्रोत हो जाए तो फिर संसार स्वर्ग की तरह हो जायेगा.संसार सुधरने लगेगा और सुन्दर लगेगा.विकार ख़त्म होने लगेंगे.

वैसे सुखद  संसार के लिए धन नहीं,अच्छा व्यक्ति चाहिए.अगर मानव विकास चाहता है तो अपने अन्दर मानवता को जगाए.अगर हम सफल जीवन की कामना करते हैं तो प्रेम और सौहार्द्र ,भाईचारे की भावना को अपने अन्दर लाना होगा.एक बार फिर अपने में सच्ची श्रद्धा की भावना लानी होगी.आत्म विश्वास को पुनः जगाना होगा.तभी हम सारी समस्याओं का सामना कर उन्हें सुलझा पाएँगे.आज हमें इसी श्रद्धा की भावना की आवश्यकता है.मनुष्य में तो इसी श्रद्धा की भावना का अंतर है कि कोई अपने से बड़ा और कोई अपने से छोटा समझता है.

हमारे पूर्वजों ने अपने आत्मविश्वासी प्रेरणा शक्ति के आधार पर हमारी सभ्यता को इतनी ऊंची सीढ़ियों पर चढ़ाया था परन्तु अब इसका पतन हो गया है,अवनति हो गयी है.अवनति तभी से शुरू हुई जब से हमने श्रद्धा और आत्मविश्वास को खोना शुरू कर दिया.हम अपने अंदर आत्मविश्वास को जगाएं और फिर मानवता को उसी जगह से ले चलें जहाँ हमारे पूर्वजों ने ला कर खड़ा किया था.किसी ने कहा है कि मानव की पूजा कौन करे? मानवता पूजी जाती है.हम सबसे पहले तो मानव बनने की कोशिश करें.अगर हम सच्चे अर्थों में मानव बन गए तो हमने मानवता की सेवा कर ली.संसार के प्राणिमात्र से प्यार करना प्रभु के विराट रूप का दर्शन करना है.जैसे जितने पदार्थ हैं सब उसी परमेश्वर के प्रतिरूप हैं.सभी शरीर उसी के हैं पशुओं व पक्षियों की भी सेवा करनी चाहिए.

जैसे सूर्य अच्छे बुरे सभी व्यक्तियों को या प्राणिमात्र को सामान रूपसे प्रकाश प्रदान करता है.गंगा का जल दुष्ट और संत सभी के लिए सामान रूप से है,समस्त प्राणिमात्र के लिए है.वृक्ष रखवाले और पेड़ काटने वाले सभी को सामान रूप से फल प्रदान करता है,उसी तरह से आप अपनी सम-दृष्टि का विकास करें.नाम और रूप भले ही अलग-अलग हैं पर उसमे जो तत्व हैं वह समान और एक ही हैं.ये सारे नाम और रूप ,संसार और वस्तु उसी पर अवलंबित हैं उसी का प्रतिबिम्ब है.

हम सभी को परमात्मा ने एक समान आधार पर जोड़ा है,इसी एकता की स्थापना पर विश्वमात्र निर्भर है.सब से प्रेम एक रूप हो कर करो.सब के सुख-दुःख साथ-साथ बांटो.चारों ओर प्रसन्नता की किरणें फूट पड़ेंगी,तभी मानवता की सच्ची सेवा होगी. राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त जी के अनुसार-

अनर्थ है कि बन्धु ही न बन्धु की व्यथा हरे
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे
यही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे

(विशेष- यह लेख २००४ ई.में आगरा की एक त्रैमासिक पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है.आज भी इस लेख की उपयोगिता बढ़ गयी है जब पूजा -स्थल को ले कर एक बार फिर इंसान -इंसान के बीच नफरत पैदा करने की कोशिश कुछ लोग कर रहे हैं.अतः इसे यहाँ पुनः प्रकाशित किया जा रहा है.)

2 टिप्‍पणियां:

  1. .

    पूनम जी,

    नमस्ते !

    आपका लेख पढ़ा। बहुत ही सार्थक एवं सामयिक पोस्ट है। इस लेख को दुबारा प्रकाशित करना भी बहुत ज़रूरी था। आज के परिपेक्ष्य में मानवता ही हमारा धर्म होना चाहिए।

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ कही गयी हैं...

    -- मनुष्य वही की जो मनुष्य के लिए मरे --

    इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपका आभार।

    .
  2. दिव्या जी
    इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद!

    पूनम