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Sunday 4 November 2012

बदलल रूप खुशी के

बुधवार, 30 नवम्बर 2011

बदलल रूप खुशी के

(श्रीमती पूनम माथुर )

हमार घर के सामने मकान बन रहल बा सूबेरे से साँझ तक मजदूर मकान बनावे मे लागल रहेला।
ओकर मालिक खड़ा होकर निगरानी करे ला काम  करि त पईसा मिली सबेरे से साँझ बिता लेवे ला । ओकर त दिमाग औरु देह दूनों लागल रहे ला। अफसर  लोग त इहै मजदूर के बनावल बड़का-बड़का आफिस मे कांम करेलन और तनखाह औरु जी पी एफ हर चीज के सुविधा बा। लाखों मे खेल रहल बाड़न -गाड़ी ,मोटर,बंगला सब कुछ उन  लोगन के खातिर लेकिन जे हाड़ -पीट के मकान बनावे ला मजदूर ओकर कोनों कदर नई खे यीहे समाज बा ओकरा के गोड़ के धूर समझल जा ला। समानता,एकता ,भाई -चारा ,ऊंच-नीच ,जाति-पांत मिटावे खातिर संत-म्हातमा पैदा लेलन लेकिन यी सब बात पर कोई के असर भईल? घर के नीचे सड़क पर एगो आदमी बतियावत जात रहे-"जब हम सम्पन्न तो खुदा भी प्रसन्न" जब इन्सान के अंदर यीहे भावना आ गईल तअ समाज के उठान कहाँ से होई। यी तो संमाज ऊंच-नीच पईसा औरु बेपईसा बालन के बीच बट गईल बा। एगो के बोरा मे पईसा रखे के जगह नई खे एगो के हाथ खाली । येही से शोषक औरु शोषित शुरू हो रहल बा।

एगो साइंटिस्ट हमार घर के बगल मे रहेलन ऊ मजदूर लोग की झोंपड़ी पुलिस के द्वारा जलावे के पर कहलन -"आप के घर के आगे झोंपड़ियाँ होतीं तो आपके घर की रौनक नहीं खराब होती क्या?पुलिस ने इन झोंपड़ियों को जला कर अच्छा ही किया"। कीचड़ मे जब गाड़ी के पहिया फंस जाई यीहे मजदूर हांथ लगा के गाड़ी के पहिया निकाल देवे ला ओकर इनके दिल मे यीहे जगह बा। सच्चे  मे  शरम से गड़ जाये के चाँही अइसन मानुष के त ।
तू आदमी हव की जानवर ।

एगो सिनेमा के कलाकार के पूर्वज लोग डाकू रहन ऊ डाकू लोग अइसन रहन की गरीब-मजलूम  बेसहारा मजदूर वर्ग के लोग के अमीरन से पईसा लूट के ई  तरह के लोगन के मदद करत रहन । आज की परिस्थिति मे  ओइसन लोगन के बहुत जरूरत बाटे। तभी समाज के ई पईसा के ठेकेदारन की ऐसी-की -तैसी हो जाई,  ओइसन  दुष्ट लोग थर-थर काँपे लागी। हम त ऐसे डाकू लोगन के श्रद्धा से प्रणाम कर अ तानी । अइसन लोग समाज मे आकर उच्च्श्रंखलता बंद करे ताकि एक सभ्य औरु बढ़ियाँ समाज के निर्माण हो सके ।

का कहीं दिल मे तो बहुत बात बा। सोंचते-सोंचते लागे ला की दिमाग फट जाई यी दुनिया के लोगन के देखला पर एगो स्लोगन  याद आवे ला -"हम दो ,हमारे दो" ई जगह मे होये के चांही " हम दो -बांटेगे खुशियाँ दसियों को"। ई तरह के लोगन के मालिक शराब पिया के पिये वाला बना देवे ला ताकि अगर ऊ जागरूक होई तो हमार बात न मानी औरु हम ओकरा ऊपर राज न कर सकब । बेचारा जब एक प्याली चाय के ऊपर दिन भर काम करे ला औरु साँझ के जब पईसा मिली तब थोड़े-थोड़े समान खरीद के खाना बनावे ला तीस दिन के राशन-पानी त ओकरा पास नई खे । सुबह और साँझ भर के बा। देखि ला बहुत मजदूर काम न मिले ला तो लौट जाला । हमार बाबू जी त दिवंगत हो गइल रहलन कुछ बरस के बाद जब हम अपना नैहर गइनी त हमार माई ई कहलस  जान त रे बेटा थोड़े दूर पर एगो मजदूर के परिवार साँझ के नहा-धो के खाना खाय खातिर बईठर रहे की घर के मालिक आवे त खाना शुरू होवे। ओकरा घरे मछरी औरु भात बनल रहे बच्चा सब के खुशी के कोई ठिकाना न रहे की आज बड़ी दिन बाद माई-बाबू के संग मछरी औरु भात मिल के खाइब। ओकर घर मे डिबरी जरत रहे ओही से घर मे रोशनी हॉत  रहे सब बड़ी खुश ,एतने देर मे एगो बिलैया मछरी खाय के खातिर कड़ाही पर कूदल डिबरी गिर गईल औरु किरासन तेल बिखरा गइल आग लग गइल अब त सारे घरे मे आग फ़ेल गइल औरु विकराल रूप  ले लेलस हाय-पुकार मच गइल के खा ल मछरी औरु भात ?बचावा -बचावा आवाज कान मे आ गइल गर्मी के दिन आग इतना भयंकर रूप ले लेलस थोड़े देर मे काम तमाम । हो गइल सब के सब स्वाहा । हमार बूढ माई कहअते-कहअते एतना रोये  लागल की ओकर तबीयत खराब हो गइल। सोंची ल त लागे ल की यीहे जिंदगी मजदूर औरु गरीब वर्ग के बा ?रउआ सब बतायीं की एकर का उपाय होये के चांही?


(29 तारीख के 'हिंदुस्तान' अखबार मे 40 झोपड़ी मे आग लागे के खबर छापल पढ़ के हम्ररा एक बैग दिमाग मे पुरान घटना -दुर्घटना जे कहीं ऊ याद पड़ गईल ,एही से यी  लिख रहल  बानी ; पढ़ के त मन अजीब हो जाला लेकिन इंसान का करे?---पूनम माथुर)  

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपके लेखन में स्वाभाविकता और सहजता है...
  2. बधाई ||

    सुन्दर प्रस्तुति ||
  3. एक तो सच्ची बात ,ऊपर से भाषा की मिठास !
    बहुत सुन्दर !
  4. समय के साथ सब कुछ बदलता है.... फिर दिखावे की तो कहें ही क्या ..?
  5. "ई तरह के लोगन के मालिक शराब पिया के पिये वाला बना देवे ला ताकि अगर ऊ जागरूक होई तो हमार बात न मानी औरु हम ओकरा ऊपर राज न कर सकब ।"
    इन पंक्तियों में आपने समाज के असली रूप को सामने ला दिया है. बहन, आपको नमन.
  6. भूषण भाई साहब नमस्ते,

    मै तो आपकी छोटी बहन हूँ ,मुझे तो आपका आशीर्वाद चाहिए,उसे बनाए रखिएगा ।

    पूनम माथुर

3 comments:

  1. मोनिका जी की बात से पूर्णतः सहमत हूँ समय के साथ सब बदल जाता है।

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  2. फिर पढ़ी पोस्ट....ऐसे विचारों की प्रासंगिकता हमेशा ही बनी रहती है....

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  3. मेरी तरफ से १०-२० कोसने उस साइंटिस्ट को
    घर की रौनक हुंह .......

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