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Wednesday 28 November 2012

गुरु नानक जयंती ---पूनम माथुर

पावन आज के दिन बा। गुरु नानक जयंती के। आज के दिन के लोग गंगा-स्नान के नाम से भी जाने लन। गुरु जे होवे लन ऊ  त अंधकार से मिटा के प्रकाश मे ले जावे के बतावे लन।लेकिन आज के दुनिया मे लोग गुरु के मतलब दूसर बना देवे ला। गुरु मन के उजाला के प्रतीक बा। और गंगा-स्नान भी केतना मिलेला। नहइब त तन के सफाई होई। परंतु गंगा-स्नान से मतलब तन-मन दूनो के सफाई मे बा। गंगा-स्नान करके बाद लोग दान-पुण्य करे ला। इ दान-पुण्य के   मतलब अपना मन के द्वार खोल। ताकि जे जरूरत मन्द बा ओहरा के आहार मिल सके ओकरा  कोई ठिकाना मिल  सके। परंतु आज के जुग मे त दान दे के लोग पत्थर पर मंदिर मे नाम लिखवावे ला। ताकि आवे  वाला लोग उंकर नाम के जान सके। वर्तमान मे जेकरा जरूरत बा ओकरा के त ना मिल सकी। अब देखि लोगन जेकरा गरीबी के कारण पढ़ाई-लिखाई मे आगे बढ़े के मौका नइखे मिलला ओकरा के मदद करे। ताकि कोई इंसान बन सके। सही शिक्षा के अभाव के कारण आज मानव के अन्दर चोरी,डकैती ,हर तरह के अपराध हो रहल बा। आज देश मे चाहे नेता होइबे चाहे अभिनेता होइबे,चाहे शिक्षक होइबे,चाहे पुलिस हर कोई हाय हाय मचावे  ला । जेकरा कारण इतना तबाही बटुये । अगर हर कोई जमा न करे त धन त दुनिया मे एतना बाटे कि कोई व्यक्ति भूखा -नंगा ना रही। हरके हर कमी पूरा होई। पर हम आगे हम आगे के चक्कर के कारण आज एतना दुनिया खराब हो गईल  बा-खून खराबी पर उतर आइल बा।

 हर कोई के एक  दिन त   मर ही के बा। काहे के बम-गोला बरसा के दहशत पैदा करे। अपना बुद्धि आऊर क्षमता के आधार पर सब के सब कुछ मिले के चाहे । तोरा मोरा हाय हाय आपन  आपंन लुकावल छिपावल ही घातक हो रहल बा। अखबार मे छपल हम सुनले रही। एक गो बूढ़ा आदमी के पास सोना के गिन्नी रहे। ऊ जब बेमार पड़ल  त ओकर पड़ौसी ओकरा के देख भाल करत रहे। पर ऊ जब मर गईल त ओकर दाह संस्कार भईल। सब लोग क़हत रहे की जरूर पड़ौसिया ओकर पईसा  के लालच मे मदद करत  रहे और सेवा-सुश्रूषा करत रहे। पडौसी त मानव भावना से करत रहे। पर ओकरा बड़ा दुख भईल । ओकरा के जहवा जलावल गईल रहे ओकर राख़ ऊलट पुलट  के देखलस तब ओकरा पता चलल की बूढ़ा हलुआ मांग ओकरा अपन सोने के गिन्नी निगल गईल  रहे। जब तक सरीर रहे  तब तक ही सब कुछ लुका सकल । परंतु मरला के बाद सब कुछ इहे रह गईल । ई सच्ची कहानी के तअ हमनी के इहे सीखे के चाहे। जमा ओतने करे के चाही  की हारी-बीमारी या आपत काल मे काम आ सके। जब सब कुछ इहे रह जाई त काहे जादे जमा आऊर काहे लुकावल छिपावल ।   समाजवाद के भावना से जीये  चाहे। जेकर नारा होएके चाहे त " सबका सबके लिए "। जहां पर हमार-हमार  के भावना होई होही मे खतरा बाटे । मन के पवित्र करे के चाही।  एही से गाना ई गाना पर ध्यान देवे के चाही ---'तोरा मन दर्पण कहलाए,भले बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाये '। एही से हमरा जाने मे आज के दिन गंगा-स्नान और गुरु नानक जयंतीके नाम से जानल जा ला।

Monday 26 November 2012

दो कवितायें

शुक्रवार, 25 नवम्बर 2011


पूनम की दो कवितायें


"तीन"



(श्रीमती पूनम माथुर )
सम से समता 
निज से निजता  
एक से एकता

लघु से लघुता

प्रभु से प्रभुता 

मानव से मानवता

दानव से दानवता

सुंदर से सुंदरता 

जड़ से जड़ता

छल से छलता

जल से जलता

दृढ़ से दृढ़ता  

ठग से ठगता

कर्म से कर्मठता

दीन से दीनता

चंचल से चंचलता

कठोर से कठोरता

समझ से समझता

खेल से खेलता

पढ़ से पढ़ता

इस का विधाता

से रिश्ता होता

ये दिल जानता

ये गहरा नाता

गर समझना आता

अपना सब लगता

मन हमारा मानता

दर्द न होता

जग अपना होता

विधाता का करता

गुणगान शीश झुकाता

मानवधर्म का मानवता

से सर्वोत्तम रिश्ता

सेवा प्रार्थना होता

सबसे अच्छा होता

ये गहरा रिश्ता

अगर सबने होता

समझा ये नाता

दिलों मे होता

रामकृष्ण गर बसता

संसार सुंदर होता

झगड़ा न होता

विषमता से समता

आ गया होता

विधाता से निकटता

तब हो जाता

जग तुमसा होता

जय भू माता 



        * * *
(नोट- यह कविता 'जो मेरा मन कहे ' पर प्रकाशित हो चुकी है)


 देखा एक बच्चा 




हमने एक छोटा बच्चा देखा 
उसमे पिता का नक्शा देखा 
दादा दादी का राजदुलारा देखा 
उसकी माँ ने उसमे संसार का नजारा देखा 

अपनों ने उसमे अपना बचपन देखा 
बच्चों का उसमे सजीव चित्रण देखा 
इनकी मस्तानी और निराली दुनिया को देखा 
प्रेम मोहब्बत की दुनिया को देखा 

सबसे अच्छी दुनिया को देखा 
इनकी भोली सूरत के आगे दुश्मनों को भी झुकते देखा 
दुश्मनों को भी इनको चूमते देखा 
इनको गैरों को भी अपना बनाते देखा 

इस फरिश्ते के आगे सबको नमन करते देखा 
सुख-दुख भूल सबको इनमे घुल मिल जाते देखा 

(यशवन्त के जन्मदिन पर उसको माता पूनम का आशीर्वाद)
 
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    Bhushan a year ago


    सरल शब्द और सशक्त भाव की सुंदर कविताएँ. यशवंत जी को जन्मदिन की कोटिशः हार्दिक शुभकामनाएँ.



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    मनोज कुमार a year ago


    अलग और अनूठे फॉर्मेट में लिखी गई सुन्दर रचना।



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    डॉ॰ मोनिका शर्मा a year ago


    बेहतरीन रचनाएँ ..माँ के आशीष रूपी शब्द मन को छू गए ....



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    sushma 'आहुति' a year ago


    दोनों ही कविताएं.... बेहतरीन शब्द सयोजन है.....



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    Rakesh Kumar a year ago


    अरे वाह! बहुत सुन्दर.
    दोनों कवितायें लाजबाब हैं.
    बहुत बहुत बधाई.



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    Akshitaa (Pakhi) a year ago


    दोनों कविताएँ बहुत अच्छी लगीं..बधाई !!



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    डॉ टी एस दराल a year ago


    ममतामयी दूसरी रचना बहुत बढ़िया लगी .
    पहली में किया गया प्रयोग भी अच्छा है .



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    रश्मि प्रभा... a year ago


    इस फरिश्ते के आगे सबको नमन करते देखा
    सुख-दुख भूल सबको इनमे घुल मिल जाते देखा ... isse badhker aashish nahin koi , na hi yash ko zarurat hogi ... punam ji - aap bahut achha likhti hain



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    अनुपमा पाठक a year ago


    दोनों कवितायेँ सुन्दर हैं!

    माँ का शब्दाशीश अभिभूत करने वाला है!



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    सदा a year ago


    दोनो ही रचनाएं बहुत बढि़या ... शुभकामनाओं के साथ आभार ।

Sunday 4 November 2012

बदलल रूप खुशी के

बुधवार, 30 नवम्बर 2011

बदलल रूप खुशी के

(श्रीमती पूनम माथुर )

हमार घर के सामने मकान बन रहल बा सूबेरे से साँझ तक मजदूर मकान बनावे मे लागल रहेला।
ओकर मालिक खड़ा होकर निगरानी करे ला काम  करि त पईसा मिली सबेरे से साँझ बिता लेवे ला । ओकर त दिमाग औरु देह दूनों लागल रहे ला। अफसर  लोग त इहै मजदूर के बनावल बड़का-बड़का आफिस मे कांम करेलन और तनखाह औरु जी पी एफ हर चीज के सुविधा बा। लाखों मे खेल रहल बाड़न -गाड़ी ,मोटर,बंगला सब कुछ उन  लोगन के खातिर लेकिन जे हाड़ -पीट के मकान बनावे ला मजदूर ओकर कोनों कदर नई खे यीहे समाज बा ओकरा के गोड़ के धूर समझल जा ला। समानता,एकता ,भाई -चारा ,ऊंच-नीच ,जाति-पांत मिटावे खातिर संत-म्हातमा पैदा लेलन लेकिन यी सब बात पर कोई के असर भईल? घर के नीचे सड़क पर एगो आदमी बतियावत जात रहे-"जब हम सम्पन्न तो खुदा भी प्रसन्न" जब इन्सान के अंदर यीहे भावना आ गईल तअ समाज के उठान कहाँ से होई। यी तो संमाज ऊंच-नीच पईसा औरु बेपईसा बालन के बीच बट गईल बा। एगो के बोरा मे पईसा रखे के जगह नई खे एगो के हाथ खाली । येही से शोषक औरु शोषित शुरू हो रहल बा।

एगो साइंटिस्ट हमार घर के बगल मे रहेलन ऊ मजदूर लोग की झोंपड़ी पुलिस के द्वारा जलावे के पर कहलन -"आप के घर के आगे झोंपड़ियाँ होतीं तो आपके घर की रौनक नहीं खराब होती क्या?पुलिस ने इन झोंपड़ियों को जला कर अच्छा ही किया"। कीचड़ मे जब गाड़ी के पहिया फंस जाई यीहे मजदूर हांथ लगा के गाड़ी के पहिया निकाल देवे ला ओकर इनके दिल मे यीहे जगह बा। सच्चे  मे  शरम से गड़ जाये के चाँही अइसन मानुष के त ।
तू आदमी हव की जानवर ।

एगो सिनेमा के कलाकार के पूर्वज लोग डाकू रहन ऊ डाकू लोग अइसन रहन की गरीब-मजलूम  बेसहारा मजदूर वर्ग के लोग के अमीरन से पईसा लूट के ई  तरह के लोगन के मदद करत रहन । आज की परिस्थिति मे  ओइसन लोगन के बहुत जरूरत बाटे। तभी समाज के ई पईसा के ठेकेदारन की ऐसी-की -तैसी हो जाई,  ओइसन  दुष्ट लोग थर-थर काँपे लागी। हम त ऐसे डाकू लोगन के श्रद्धा से प्रणाम कर अ तानी । अइसन लोग समाज मे आकर उच्च्श्रंखलता बंद करे ताकि एक सभ्य औरु बढ़ियाँ समाज के निर्माण हो सके ।

का कहीं दिल मे तो बहुत बात बा। सोंचते-सोंचते लागे ला की दिमाग फट जाई यी दुनिया के लोगन के देखला पर एगो स्लोगन  याद आवे ला -"हम दो ,हमारे दो" ई जगह मे होये के चांही " हम दो -बांटेगे खुशियाँ दसियों को"। ई तरह के लोगन के मालिक शराब पिया के पिये वाला बना देवे ला ताकि अगर ऊ जागरूक होई तो हमार बात न मानी औरु हम ओकरा ऊपर राज न कर सकब । बेचारा जब एक प्याली चाय के ऊपर दिन भर काम करे ला औरु साँझ के जब पईसा मिली तब थोड़े-थोड़े समान खरीद के खाना बनावे ला तीस दिन के राशन-पानी त ओकरा पास नई खे । सुबह और साँझ भर के बा। देखि ला बहुत मजदूर काम न मिले ला तो लौट जाला । हमार बाबू जी त दिवंगत हो गइल रहलन कुछ बरस के बाद जब हम अपना नैहर गइनी त हमार माई ई कहलस  जान त रे बेटा थोड़े दूर पर एगो मजदूर के परिवार साँझ के नहा-धो के खाना खाय खातिर बईठर रहे की घर के मालिक आवे त खाना शुरू होवे। ओकरा घरे मछरी औरु भात बनल रहे बच्चा सब के खुशी के कोई ठिकाना न रहे की आज बड़ी दिन बाद माई-बाबू के संग मछरी औरु भात मिल के खाइब। ओकर घर मे डिबरी जरत रहे ओही से घर मे रोशनी हॉत  रहे सब बड़ी खुश ,एतने देर मे एगो बिलैया मछरी खाय के खातिर कड़ाही पर कूदल डिबरी गिर गईल औरु किरासन तेल बिखरा गइल आग लग गइल अब त सारे घरे मे आग फ़ेल गइल औरु विकराल रूप  ले लेलस हाय-पुकार मच गइल के खा ल मछरी औरु भात ?बचावा -बचावा आवाज कान मे आ गइल गर्मी के दिन आग इतना भयंकर रूप ले लेलस थोड़े देर मे काम तमाम । हो गइल सब के सब स्वाहा । हमार बूढ माई कहअते-कहअते एतना रोये  लागल की ओकर तबीयत खराब हो गइल। सोंची ल त लागे ल की यीहे जिंदगी मजदूर औरु गरीब वर्ग के बा ?रउआ सब बतायीं की एकर का उपाय होये के चांही?


(29 तारीख के 'हिंदुस्तान' अखबार मे 40 झोपड़ी मे आग लागे के खबर छापल पढ़ के हम्ररा एक बैग दिमाग मे पुरान घटना -दुर्घटना जे कहीं ऊ याद पड़ गईल ,एही से यी  लिख रहल  बानी ; पढ़ के त मन अजीब हो जाला लेकिन इंसान का करे?---पूनम माथुर)  

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपके लेखन में स्वाभाविकता और सहजता है...
  2. बधाई ||

    सुन्दर प्रस्तुति ||
  3. एक तो सच्ची बात ,ऊपर से भाषा की मिठास !
    बहुत सुन्दर !
  4. समय के साथ सब कुछ बदलता है.... फिर दिखावे की तो कहें ही क्या ..?
  5. "ई तरह के लोगन के मालिक शराब पिया के पिये वाला बना देवे ला ताकि अगर ऊ जागरूक होई तो हमार बात न मानी औरु हम ओकरा ऊपर राज न कर सकब ।"
    इन पंक्तियों में आपने समाज के असली रूप को सामने ला दिया है. बहन, आपको नमन.
  6. भूषण भाई साहब नमस्ते,

    मै तो आपकी छोटी बहन हूँ ,मुझे तो आपका आशीर्वाद चाहिए,उसे बनाए रखिएगा ।

    पूनम माथुर