©इस ब्लॉग की किसी भी पोस्ट को अथवा उसके अंश को किसी भी रूप मे कहीं भी प्रकाशित करने से पहले अनुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें। ©

Thursday 19 September 2013

"क्या हमको ही देश की नींव कहा"---~(कवि मोहित पूनफेर)~

"मृत सी जीवन शैली को,
ना जाने किसने सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
हमें दिनभर है मैला ढौना,
चंद टुकड़ों के लिए है रोना।
भुखे पेट प्यासी प्यास लेकर,
फुटपाथ पर रोज हमें सोना।
गरीबी रेखा के नीचे होने से,
हमारा भी एक मकान बना।
फिर उस मकान की छत के नीचे,
माँ अब्बा का शमशान बना।
किसने मृत जिन्गानी को,
माथे पर लिखी तकदीर कहा।
हम भी भारत के बालक है
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
मृत सी जीवन शैली को,
ना जाने किसने सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
स्कूल स्लेट कॉपी पेंसिल,
छीन गया हमारा झोला है।
गर्मी में जिन्दगानी मोम सी है,
सर्दी में बर्फ का गोला है।
जुते वर्दी की बात ना कर,
बस फटा पुराना चोला है।
फिर आते जाते राहगीर ने,
हमको पाजी कीड़ा निर्जिव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
मृत सी जीवन शैली को,
ना जाने किसने सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
दीवाली होली नवरात्रों पर,
हमारी भी मौज हो जाती है।
भारत की माँए दुआएँ खरीदने,
नए कपड़े हमारे लाती है।
हलवा पूरी मालपूए खीर,
वो झोली में रख जाती है।
ना जाने किस श्रद्धा मुर्ति ने,
हमें रुप ईशवरीय सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
मृत सी जीवन शैली को,
ना जाने किसने सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
~~~~(कवि मोहित पूनफेर)~~~~~~
Photo: "क्या हमको ही देश की नींव कहा"
~(कवि मोहित पूनफेर)~

"मृत सी जीवन शैली को,
ना जाने किसने सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
हमें दिनभर है मैला ढौना,
चंद टुकड़ों के लिए है रोना।
भुखे पेट प्यासी प्यास लेकर,
फुटपाथ पर रोज हमें सोना।
गरीबी रेखा के नीचे होने से,
हमारा भी एक मकान बना।
फिर उस मकान की छत के नीचे,
माँ अब्बा का शमशान बना।
किसने मृत जिन्गानी को,
माथे पर लिखी तकदीर कहा।
हम भी भारत के बालक है
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
मृत सी जीवन शैली को,
ना जाने किसने सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
स्कूल स्लेट कॉपी पेंसिल,
छीन गया हमारा झोला है।
गर्मी में जिन्दगानी मोम सी है,
सर्दी में बर्फ का गोला है।
जुते वर्दी की बात ना कर,
बस फटा पुराना चोला है।
फिर आते जाते राहगीर ने,
हमको पाजी कीड़ा निर्जिव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
मृत सी जीवन शैली को,
ना जाने किसने सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
दीवाली होली नवरात्रों पर,
हमारी भी मौज हो जाती है।
भारत की माँए दुआएँ खरीदने,
नए कपड़े हमारे लाती है।
हलवा पूरी मालपूए खीर,
वो झोली में रख जाती है।
ना जाने किस श्रद्धा मुर्ति ने,
हमें रुप ईशवरीय सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
.
मृत सी जीवन शैली को,
ना जाने किसने सजीव कहा।
हम भी भारत के बालक है,
क्या हमको ही देश की नींव कहा।।
~~~~(कवि मोहित पूनफेर)~~~~~~
 —

1 comment:

  1. खूबसूरत लेखन
    सार्थक अभिव्यक्ति
    सादर

    ReplyDelete