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Tuesday 24 September 2013

बस यूँ ही

क्या ले के आए थे सपना

कोई नहीं है जग  में अपना

सब हैं मृग मरीचिका के सताये

दुनिया में हैं सब अपने को बहलाये

  सब  हैं बेगाने कहने को चले अपने

ये क्या जाने खुदा के बनाये

तीर   औरों पे  कहीं चलाये

 निशाना कहीं और लगाये

चले किसी को गले लगाने

पर क्या फायदा अपने को बचाये

सब कुछ है अनबूझ पहेली

सखी रे कोई नहीं तेरी सहेली

सपना टूटा बिखरे अपने

हो गए सब  आज पराये 

राग और रंग का क्या मिलना

अब तो है  सब को अलविदा कहना

एक-एक कर सब को है चलना। ।

---(पूनम माथुर)







1 comment:

  1. खरी-खरी बातें ही दिल को छूते
    सादर

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