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Sunday 13 October 2013

आज के रावण ---गिरीश नलिनी बिशनोई

हर साल : 

बांस की खप्पचियों से बने 
रावण को फूंकने वालों 
रुको ,ढूंढो 
इसके इर्द -गिर्द खड़ी भीड़ में 
उन रावणों को ढूंढो 
जो नित्य ही 
सीताओं का हरण ही नहीं 
बलात्कार के बाद 
उसकी हत्या भी करते हैं । 

क्या इससे 
यह रावण अच्छा नहीं 
जिसकी कैद में 
सीता की पवित्रता अच्छुण रही 
आज तुम 
इस पुतले को नहीं 
इन्हे भी एक पर एक चुन दो 
और फिर बारूद के पलीते से 
लगा दो आग 
ताकि आज भी सीताएं 
कलयुगी रावण से मुक्त हो जाएँ 
 और तुम्हें 
एक पर्व को मनाने का सच्चा सुख 
मिल जाये। । 

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यह कविता 'दैनिक जागरण', आगरा के 'पुनर्नवा'-07 अक्तूबर 2005 के अंक में प्रकाशित है। 
कवि-गिरीश नलिनी बिशनोई, डॉ ज़ाकिर हुसैन रोड, नागौर, बिजनौर । 
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'दशहरा'की हार्दिक शुभकामनायें

7 comments:

  1. आपने लिखा....हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {रविवार} 13/10/2013 को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल – अंकः 024 पर लिंक की गयी है। कृपया आप भी पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें। सादर ....ललित चाहा

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  2. काश हम सब अपने अंदर के रावण को मार पाते ...
    अच्छी रचना ...
    विजय दशमी की बधाई ...

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  3. sahi kaha aapne ....bahut sundar aur sarthk rachna ...

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  4. जिस दिन ऐसा हो जायेगा
    उस दिन रावण को जलाने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी
    विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनायें

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  5. विजय दशमी की बधाई ...

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  6. बधाई ,सशक्त सार्थक समाज उत्प्रेरक लेखन।

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  7. बधाई ,सशक्त सार्थक समाज उत्प्रेरक लेखन।

    बधाई ,सशक्त सार्थक समाज उत्प्रेरक लेखन।

    सदनों में छिपे बैठे हैं विशेषाधिकार की आड़ में।


    आज के रावण --आज के रावण ---गिरीश नलिनी बिशनोई

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