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Wednesday 17 December 2014

बच्चों की मौत

ज्ञान के दुश्मनों ने मौत का स्थान स्कूल को चुना :

क्या तुम्हारा नहीं कोई 
क्या कर ली दिखा हाथ की सफाई 
माँ बाप की आँखों में दी रुसवाई 
 जब मरोगे तो आएगी आँखों में सच्चाई
क्यों करते हो खुदा के बंदों से बेवफाई 
क्यों चले हो मिटाने को खुदाई 
दुनिया में तुम नहीं कर सकते हो भलाई 
तुम साँप की औलाद हो भाई 
जब चाहे तुमने काट खाई 
जब याद आएगी सारे कुकर्मों की कमाई 
कोढ़ और दाद के जलजले में फँसोगे नहीं मिलेगी रिहाई 
मारने वाले से बचाने वाले की ताकत ज़्यादा है रे बलवाई 
क्यों तुमने की बच्चों से लड़ाई 
कोई नहीं देगा तुम्हें दुहाई। । 

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Monday 15 December 2014

नेता

ताने हैं इनके शब्द बंदूक
वार करते हैं ये अचूक
पेट इनका है पैसों का भंडार
करते हैं ये जनता पर अत्याचार
और गाते हैं ये दिखावे का मल्हार । ।

वोट मांगते हैं बन भिखारी
और जीतने पर रौंदती इनकी सवारी ।

भूखी-नंगी जनता को देते नहीं
कभी भर पेट खाना
बेजान इमारतें खड़ी करवाते
खोलते हैं मुफ्त का दवाखाना।

आंधी आए ऐसी आज
न रहे इनका तख्त-ओ-ताज ।

करते हैं ये बात मजदूरों की
लात  मारते हैं मजबूरों को
घर की कभी नहीं सफाई की
चले हैं जनता में अपनी छवी बसाने को।

क्या भला करेंगे ये देश का ?
मन के अंदर भरा गंदगी विद्वेष का।

खुद का मैला किए कभी साफ नहीं
दिखाते हैं मैला ढोने से कभी परहेज नहीं।

करते हैं झाड़ू की बात
संसद में बिछाए हैं फूट की बिसात।

जनता जनार्दन के वेश में खड़ी होगी
मांगेगी किए का हिसाब
तब खुलेगी तुम्हारे कुकर्मों की किताब
फिर बोलो क्या दोगे अपने किए का जवाब।
क्या दोगे उत्तर इनके सवाल का
पूछता है जनता का सैलाब । ।