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Thursday 24 December 2015

स्मृति नागपाल की अशक्त लोगों के प्रति समवेदनाएं


प्रकृति जीवन को जीने के लिए सिखाती है । कोई अपनों से सीखता है कोई परायों से सीखता है। दिल में समवेदनाएं होने से बहुत काम हो जाता है। समवेदनाओं को भी संजोना चाहिए।

Wednesday 23 December 2015

मजदूर से सर्जन तक का सफर


सच्ची लगन सबसे बड़ी चीज़ है , किसी भी चीज़ के लिए अगर लगन हो तो अमीरी-गरीबी कुछ नहीं है। आजकल के बच्चों को इससे सबक सीखना चाहिए जो कहते हैं हमको यह नहीं मिला, वह नहीं मिला और तमाम बहाने कर देते हैं। उनके लिए डॉ प्रेम शंकर का उदाहरण सबसे बड़ा सबक होना चाहिए।

Tuesday 17 November 2015

सूर्य उपासना का पावन पर्व 'छठ' पूजा -------- पूनम


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 सूर्य उपासना का पावन पर्व 'छठ' पूजा :
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सूर्य देवता सबको रोशनी-प्रकाश-ज्योति- ऊष्मा सब एक समान देते हैं। इसके बदले में कुछ नहीं मांगते हैं । जीवन को प्रकाशित करते रहते हैं चाहें वह  वनस्पति जगत हो चाहें प्राणी जगत।जीवन में आने और जाने वाले उतार-चढ़ाव को भी दर्शाते हैं।जो आज जा रहा है उससे घबड़ाएँ नहीं उसका भी स्वागत करें और आने वाले कल अर्थात भविष्य का भी स्वागत करें।  हर परिस्थिति में मनुष्य अपने 'कर्म' को न भुलाए 'सूर्य' देवता यह भी संदेश देते हैं।  परंतु  मनुष्य आज बाज़ार के चक्कर में पड़ के इस पर्व की मूल भावना को ही भुला बैठा है। सबसे बड़ी बात है कि, इस पर्व में अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं है। इस पूजा में सब एक-दूसरे की मदद करते हैं।  साफ-सफाई (हाईजीन ) रखते हैं। भेदभाव रहित त्योहार है यह। हमें तो इसमें ही साम्यवाद नज़र आता है।
जीवनदायनी सूर्य को शत-शत नमन और प्रणाम।

Friday 13 November 2015

खुशहाली -------- पूनम

खुशहाली

January 19, 2012 at 9:26pm
हाथ खाली,पेट खाली,थाली खाली।
जेब खाली,आना खाली,जाना खाली।
फिर क्यों करते हो गैरों की दलाली।
फिर क्यों करते हो चोरों की रखवाली।
क्यों नहीं लाते हो भारात मे खुशहाली। ।

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चोट और चोर 

चोट भीतर घाव करता है,
चोर बाहर घाव करता है।

चोट का निशान मिटा नहीं करता है,
चोर दगाबाजी करता है।

चोट समय-समय पर दर्द दिया करता है,
चोर समय-समय पर माल उड़ाया करता है। ।

(पूनम माथुर)

Tuesday 10 November 2015

इन्सानों की दुनिया बड़ी निराली है

दाग तो चाँद में भी है। पर चाँद कितना सुंदर है और शीतलता प्रदान करता है।इन्सानों की दुनिया भी अजीब है। वह इस तरह से ठुकराना ही जानता है। जो इन परिस्थितियों से गुज़रता है उसके दिलोदिमाग पर क्या बीतती है वही सही बयां कर सकता है। परंतु समाज को क्या कहेंगे? पशु जगत में गाय चितकबरी होती है तो उसका दूध सबसे अच्छा माना जाता है। चलिये क्या कहें इन्सानों की दुनिया बड़ी निराली है। किसी को सहारा देने के बजाए धक्का मार देते हैं और घृणा भी करते हैं।परंतु अपने साहस को कभी नहीं खोना चाहिए। 
(पूनम )

Monday 9 November 2015

स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है


स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है लेकिन लोग आजकल सोना-चांदी को धन समझते हैं। जो निर्धन भी है लेकिन स्वस्थ है तो उसके पास सबसे बड़ा धन है। पैसा होने बावजूद भी लोग शरीर अस्वस्थ होने के कारण कराह रहे हैं तो ऐसा धन किस काम का? गरीब सूखी रोटी खा कर भी स्वस्थ है तो उसके पास सब कुछ है। शरीर रूपी घर , धन, खुशी सब कुछ उसके पास है। 'स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन बसता है। '
(पूनम ) 

Thursday 5 November 2015

बढ़ती उम्र कोई बाधा नहीं है


जीवन में आनंद की अनुभूती उम्र से नहीं होती है सतत प्रयास के कारण होती है। इसी के द्वारा खुशी मिलती है और आनंद प्राप्त होता है। अनुभव के द्वारा दुनिया में बहुत कुछ प्राप्त होता है। बढ़ती उम्र इसके लिए कोई बाधा नहीं होती है।
(पूनम )

Monday 19 October 2015

कैसे खाएं अरहर की दाल ?

केंद्र सरकार ने ऐसी चली वोटों  की चाल
जनता है बेहाल 
कैसे खाएं अरहर की दाल ?
कैसा मचाया केंद्र ने बवाल ?
कैसे कोई समझे इनकी टेढ़ी चाल ?
दाल सब्जी फल खाने को है जनता बेमुहाल। 
फिर भी सरकार के कान पर नहीं रेंगती है जूँ  :







Thursday 15 October 2015

सेना में नारी


(बड़ा करके पढ़ने के लिए चित्र पर डबल क्लिक करें और फिर पढ़ें )

सुबह-सुबह आज के अखबार में सेना में सेवारत नारियों के बारे में पढ़ा। नारी को 'शक्ति' का रूप माना जाता है। नवरात्र के दिनों में  माँ 'दुर्गा ' के अर्चना की जाती है माता तो अलौकिक शक्ति हैं। उनसे शक्ति का वरदान मांगा जाता है। परंतु लौकिक जगत में क्या नारी का स्थान ऐसा है? कहीं पर भी हो हर जगह नारी उपेक्षित ही है। सेना में कार्यरत नारियां भी अपने को सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं। इसी कारण वे असहज रहती हैं। बीच में ही काम छोड़ कर लौट आती हैं। हर जगह नारी -शक्ति को महान माना जाता है, परंतु यह सब क्या है? हर जगह उनके लिए एक सरहद, एक सीमाएं होती हैं । नारी के प्रति भेदभाव 'पशु जगत' व 'पक्षी जगत ' में तो होता नहीं है फिर 'मानव जगत ' में ऐसा भेद क्यों? क्या यही 'मनुष्य ' की श्रेष्ठता है?

Monday 12 October 2015

समस्या-समाधान

लोग कहते हैं कि, समस्या है पर समाधान भी है। सोचने का नज़रिया बदलिये। अगर खुद से बदलाव नहीं आता है तो लोगों से मिल कर इसका समाधान निकालिए।

Tuesday 29 September 2015

डिजिटल डीटाक्स


हर चीज़ का नाफा-नुकसान होता है। संतुलित रूप से प्रयोग करने से हर चीज़ ठीक रहती है। काम करने के लिए यह अच्छा साधन है । लेकिन इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

अति का भला न बरसना , अति की भली न धूप। 
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूक। । 

Monday 28 September 2015

हालात से कभी घबराना नहीं चाहिए

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इनके जज्बे को सलाम। हर महिला को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए और  किसी भी परिस्थिति में टूटना नहीं चाहिए। दुख के बाद ही खुशी होती है। कठिनाइयाँ बहुत बड़ा संबल होती हैं व जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं।  
(पूनम )

Saturday 26 September 2015

सुनें और समझें --- पूनम

आपने सुना होगा गुस्से में लोग अक्सर यही कहते हैं मैं तुम्हें जान से मार दूंगा। परंतु लोग यह नहीं सोचते हैं कि, क्या ऐसा करना या कहना उचित है। अरे तुम कौन सा तीर मार लोगे? मरने वाला थोड़ा पहले चला जाएगा। फिर तुम्हें भी तो वहीं आना है। क्या तुम अमर हो? 

सुधार या आतंक :

कभी-कभी सुधार करते करते इंसान थक जाता परंतु सुधार नहीं कर पाता है। ऐसी बात नहीं कोई सुधार नहीं चाहता है। अगर सब सुधर जाएँ तो  फिर दुनिया ही निराली होगी। आतंक के माध्यम से लोग डर पैदा करते हैं चाहे वह आतंक घर में, बाहर हो, समाज में, परिवार में या देश में हो, विदेश में या दुनिया में। लोग अपने अंदर रहने वाली बुराई को तो बाहर निकाल नहीं पाते हैं। लेकिन इन आतंकवादियों पर हल्ला बोलते हैं। क्या ये आतंकवादी प्यार या प्रेम नहीं चाहते हैं? क्या वे नहीं चाहते हैं कि उनका भी घर परिवार हो, वे भी सुख चैन की ज़िंदगी जियेँ। हर कोई अमन और चैन चाहता है।हर एक के भीतर खुशी और शांति की चाह होती है। जन्म से सभी इंसान  तो मनुष्य या मानव पैदा होते हैं 'दानव' कौन होता है ज़रा हमें बताइये?

कुछ लोगों के द्वारा कुछ लोगों को दबाया जाता है जैसे जमींदारी प्रथा को ही लें और भी कई उदाहरण हैं मानव द्वारा मानव को त्रस्त करने व मानसिक उत्पीड़न करने के। दबाने कुचलने की स्थिति तो हृदय में आतंक को बढ़ावा देती है। यहीं से फिर बदला लेने की ज्वाला हृदय में धधकती है, वो फिर वृहद हो जाती है। सभी को उनकी योग्यता और कार्य क्षमता के अनुसार दाम प्राप्त हो तो फिर किस बात की लड़ाई होगी? जीवन सुंदर होगा और धरती भी हरी भरी होगी। हर व्यक्ति के अंदर ममत्व और अपनत्व होता है। शैतान बनने पर परिस्थितियाँ मजबूर करती हैं। लेकिन कुछ लोगों को शुरू से बुरा बनाया जाता है। वे जन्मजात नहीं होते हैं। एक बार बुराई के दलदल में फँसने पर वह दलदल में फँसता ही चला जाता है। मुझे तो ऐसा लगता है कि दुनिया में प्यार और प्रेम का प्रतिशत ज़्यादा है बनिस्बत झगड़े और बुराई के । 

चलिये ईश्वर से प्रार्थना करें मानव के कल्याण के लिए । वह सभी को सद्बुद्धि और सन्मति दें;  पृथ्वी पर बसने वाले हर जीव-जन्तु और मानवों के लिए।  कुछ तो लालची व नकलची होते हैं ऐसे लोगों से सावधान रहने की ज़रूरत है। इन पर विश्वास न करें। 
पूनम 
 23-09-2015 

Wednesday 23 September 2015

ईंट उठाना ज़्यादा अच्छा है


शिक्षा का स्तर क्या हो गया है? इससे तो अच्छा है अनपढ़ ही रहें । इससे तो ईंट  उठाना ज़्यादा अच्छा है। पर सबको ईंट उठाने का भी काम मिलता कहाँ है? क्या बनना है बच्चे नहीं तय करते उनके अभिभावक खांचे में फिट कर देते हैं। शिक्षा के विकास के बदले विनाश ही हो रहा है। न तो शिक्षक समझते हैं न ही माता-पिता। धनवान बनने के बजाए चरित्रवान बनना सिखाएँ माता-पिता।
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Wednesday 16 September 2015

पंडित जी को श्री कृष्ण की छ्वी नज़र आई


15 सितंबर 2015 
RN Tripathi
2 hrsEdited
हिंदी और हिंदी के साहित्यकारों को गौरवान्वित करते हुए श्री रंगनाथ मिश्र ... क्या कहीं चुल्लू भर पानी है ..क्या इनका बहिष्कार हिंदी साहित्यकार करेंगे। या वे भी चरण बन्दना में शामिल हो जाएंगे.....
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  • 25 people like this.
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  • Nutan Gupta हम तो पहले ही धिककार कह चुके हैं।
    2 hrs · Like · 2
  • Meenu D Gaddi छी छी छी....पानी भी नहीं मिलेगा डूबने को
    2 hrs · Like · 1
  • Neeraj Tripathi panditon ki naak katwa di.. mishra ji ne is budape p kya sanskar dege aane wali peedi ko......ye saman k kabil h .........
    2 hrs · Edited · Like · 1
  • Ashutosh Tripathi छी छी छी ये ब्राह्मणों के नाम पर कलंक है, ये ब्राह्मणों को हो क्या गया है ।
    2 hrs · Like · 2
  • Poet Mahendra Chaturvedi यह चाटुकारिता की पराकाष्ठा है |
    2 hrs · Like · 1
  • B Neelam Khilnani Sach mey. Chatukarita hee hai
    2 hrs · Edited · Like · 2
  • RN Tripathi क्या इनका बहिष्कार हिंदी साहित्यकार करेंगे। या वे भी चरण बन्दना में शामिल हो जाएंगे
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  • Poet Mahendra Chaturvedi "सत्ता के दरबार में चमचों की भरमार ,
    बगुले हुक्का भर रहे गिद्ध बने सरदार |"
    1 hr · Like · 1
  • Ravinder Gaur bahut sharamnak ....kuch to sharm karo apne umer ki apni jaati ki....
    1 hr · Like
  • Ranveer Abhimanyu Sahityajagat ke ranga-villa ka punarmilan
    1 hr · Like
  • Reeta Singh अरे पुरस्कार के वजन से बुढापा में पैर हिल गया होगा तो मुख्यमंत्री उठा रहे होगे। 
    क्या आपलोग भी मीडिया के कैप्शन पर परेशान हो गए। 
    बेचारे को थाम लिया नहीं तो कही ........... उठ ना गये होते। 
    1 hr · Like
  • Geeta Singh देखा नही डूबकर तो मर रहे हैं जूतो की नाप में
    1 hr · Like
  • Geeta Singh यही क्यों चरण चाट रहे है। काशीनाथ सिंह तो नही झुके।
    1 hr · Like
  • DrPushplata Adhiwaqta Insan aur pillo me jyada firk nhi ve mattha peekar trapt ye samman pakar ji jo ghar se bahar nhi aate unhe samman ke nam par bhikhariyon ki trah dekha samman ki bheekh pakr gadgad hote mukhymantri to fir bhi raja yhan to ab jo bhi dene ki halat me dikhai pad rha hai bina liye hi pane ki aas me dandvat ji bhut kam apvad to .......
    49 mins · Edited · Like
  • Abhinav Shukla मैं तुरंत आदरणीय का नाम भारत रत्न के लिए अनुमोदित करता हूँ। इनकी सरलता और सहजता देख कर नेत्र भर आये। हम बड़े छोटों में भेद न करने की बात करते हैं तथा इन्होने उसे मूर्त रूप प्रदान किया है। साहित्य को इसी प्रकार सत्ता के चरणों में लोटना चाहिए और सत्ता को उसे न लोटने देने का श्रेय लेना चाहिए। ऐसे सत्ता और साहित्य दोनों को अपनी महानता का भ्रम बना रहेगा। दिल्ली के एक कलमकार को मैं जानता हूँ जो कांग्रेस राज में उनके स्वर गाते थे और उनकी जूठन खाते थे तथा भाजपा राज में हाफ पैंट सिलवा कर घूम रहे हैं तथा प्रशस्तियों को चूम रहे हैं। आदरणीय नें जो सबके सामने किया है वे परम आदरणीय छिप छिप कर करते हैं। मैं आदरणीय को प्रणाम करता हूँ।
  • Vijai RajBali Mathur शायद पंडित जी को मुख्यमंत्री में श्री कृष्ण की छ्वी नज़र आई होगी और वे सहसा ही दंडवत हो गए होंगे। आप लोग तो बेकार उनका मखौल उड़ा रहे हैं। बेचारे को 'भगवान' के साक्षात दर्शन हो गए ,दुनिया मज़ाक उड़ाए तो उड़ाए।
    15 सितंबर 2015 
    RN Tripathi
    2 hrsEdited
    हिंदी और हिंदी के साहित्यकारों को गौरवान्वित करते हुए श्री रंगनाथ मिश्र ... क्या कहीं चुल्लू भर पानी है ..क्या इनका बहिष्कार हिंदी साहित्यकार करेंगे। या वे भी चरण बन्दना में शामिल हो जाएंगे.....
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    • Nutan Gupta हम तो पहले ही धिककार कह चुके हैं।
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    • Meenu D Gaddi छी छी छी....पानी भी नहीं मिलेगा डूबने को
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    • Neeraj Tripathi panditon ki naak katwa di.. mishra ji ne is budape p kya sanskar dege aane wali peedi ko......ye saman k kabil h .........
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    • Ashutosh Tripathi छी छी छी ये ब्राह्मणों के नाम पर कलंक है, ये ब्राह्मणों को हो क्या गया है ।
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    • Poet Mahendra Chaturvedi यह चाटुकारिता की पराकाष्ठा है |
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    • B Neelam Khilnani Sach mey. Chatukarita hee hai
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    • RN Tripathi क्या इनका बहिष्कार हिंदी साहित्यकार करेंगे। या वे भी चरण बन्दना में शामिल हो जाएंगे
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    • Poet Mahendra Chaturvedi "सत्ता के दरबार में चमचों की भरमार ,
      बगुले हुक्का भर रहे गिद्ध बने सरदार |"
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    • Ravinder Gaur bahut sharamnak ....kuch to sharm karo apne umer ki apni jaati ki....
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    • Ranveer Abhimanyu Sahityajagat ke ranga-villa ka punarmilan
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    • Reeta Singh अरे पुरस्कार के वजन से बुढापा में पैर हिल गया होगा तो मुख्यमंत्री उठा रहे होगे। 
      क्या आपलोग भी मीडिया के कैप्शन पर परेशान हो गए। 
      बेचारे को थाम लिया नहीं तो कही ........... उठ ना गये होते। 
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    • Geeta Singh देखा नही डूबकर तो मर रहे हैं जूतो की नाप में
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    • Geeta Singh यही क्यों चरण चाट रहे है। काशीनाथ सिंह तो नही झुके।
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    • DrPushplata Adhiwaqta Insan aur pillo me jyada firk nhi ve mattha peekar trapt ye samman pakar ji jo ghar se bahar nhi aate unhe samman ke nam par bhikhariyon ki trah dekha samman ki bheekh pakr gadgad hote mukhymantri to fir bhi raja yhan to ab jo bhi dene ki halat me dikhai pad rha hai bina liye hi pane ki aas me dandvat ji bhut kam apvad to .......
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    • Abhinav Shukla मैं तुरंत आदरणीय का नाम भारत रत्न के लिए अनुमोदित करता हूँ। इनकी सरलता और सहजता देख कर नेत्र भर आये। हम बड़े छोटों में भेद न करने की बात करते हैं तथा इन्होने उसे मूर्त रूप प्रदान किया है। साहित्य को इसी प्रकार सत्ता के चरणों में लोटना चाहिए और सत्ता को उसे न लोटने देने का श्रेय लेना चाहिए। ऐसे सत्ता और साहित्य दोनों को अपनी महानता का भ्रम बना रहेगा। दिल्ली के एक कलमकार को मैं जानता हूँ जो कांग्रेस राज में उनके स्वर गाते थे और उनकी जूठन खाते थे तथा भाजपा राज में हाफ पैंट सिलवा कर घूम रहे हैं तथा प्रशस्तियों को चूम रहे हैं। आदरणीय नें जो सबके सामने किया है वे परम आदरणीय छिप छिप कर करते हैं। मैं आदरणीय को प्रणाम करता हूँ।
    • Vijai RajBali Mathur शायद पंडित जी को मुख्यमंत्री में श्री कृष्ण की छ्वी नज़र आई होगी और वे सहसा ही दंडवत हो गए होंगे। आप लोग तो बेकार उनका मखौल उड़ा रहे हैं। बेचारे को 'भगवान' के साक्षात दर्शन हो गए ,दुनिया मज़ाक उड़ाए तो उड़ाए।
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