सामने-सामने की लड़ाई तो भले ही खत्म हो गई लेकिन अंदरूनी उखाड़-पछाड़ अभी तक जारी है। देश,परिवार,समाज टूटने के बाद भी लोगों को कुछ समझ नहीं आ रहा है। लोगों के सिर पर लड़ाई का भूत सवार है। तेरा-मेरा के चक्कर में पड़े हुये हैं । शरीर छूट जाने के बाद न सीमाएं होती हैं न रिश्ते सब कुछ तो यहीं छूट जाना है फिर काहे बात की लड़ाई?
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