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Sunday 30 August 2015

स्मरण :भगवती चरण वर्मा/शैलेंद्र

ये लोग दुनिया से चले गए पर दुनिया वालों को बहुत कुछ दे गए । ये लेखक और कवि तो थे ही समाज को बदल देने की ताकत रखते थे। परंतु आज का यह पैसा युग अपनी ही दुनिया में मस्त है । फिर भी आज भी उनके दर्शन और आदर्श समाज को एक नई दिशा दे सकते हैं। 

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Saturday 29 August 2015

रक्षाबंधन


यह त्यौहार बहन-भाई के लिए नहीं बना था। यह तो विद्या प्रारम्भ करने का पर्व था। सर्व-शिक्षा का अभियान था यह। क्या मर्द क्या औरत सबका मस्तिष्क परिष्कृत हो यही इस पर्व का उद्देश्य था। कालांतर में इसकी मान्यता ही बदल गई और बहनों ने भाईयों के हाथ में धागा बांधना शुरू कर दिया।  

Wednesday 19 August 2015

दूसरों के कल्याण के लिए ऋणी हुये भारतेन्दू हरिश्चंद्र : 'युगावतार' नाटक --- पूनम



कल दिनांक 18 अगस्त 2015 को 'यशपाल सभागार' में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, राजर्षि पुरोषोत्तम दास टंडन भवन, महात्मा गांधी मार्ग, लखनऊ द्वारा आयोजित पद्म भूषण अमृतलाल नागर जन्म शताब्दी के अवसर पर 'युगावतार' नाटक का मंचन किया गया जो उन्हीं के द्वारा लिखित है।मंचन से पूर्व उर्मिल कुमार थपलियाल जी द्वारा उनके नाट्य -लेखन पर प्रकाश डाला।उन्होने बताया कि अमृतलाल जी को नाटक के मुक़ाबले 'कहानी' व 'उपन्यास' लिखना ज़्यादा अच्छा लगता था। 
भारतेन्दू हरीशचंद सोच, विचार और व्यवहार में बहुत बड़े थे। नाटक देखते समय ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे साक्षात भारतेन्दू हरीशचंद को ही देख रहे हैं। इतनी जीवंतता थी जैसे उन्हीं के युग में जी रहे हैं। दुख, तकलीफ की सीमाओं को लांघ कर इनहोने सदैव दूसरों के लिए ही किया- समाज के लिए, देश के लिए, मातृ भाषा के लिए और सभी भाषाओं की इज्ज़त की। होम्योपैथी, ज्योतिष तथा अन्य शास्त्रों व और भी विधाओं का सम्मान करना कोई उनसे सीखे।उनका कहना था-'निज भाषा उन्नति अहें सब उन्नति को मूल, बिनु निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को सूल । '   उन्होने कहा कि मैंने अमीर कुल में जन्म लिया है यह मेरा सौभाग्य है किन्तु मैं ऋणी हूँ यह मेरा दुर्भाग्य है। जिसके सिर पर ऋण का बोझ होता है  वह कैसे किसी के सामने सिर उठा सकता है। यहाँ उनकी महानता की पराकाष्ठा दिखाई गई  है। दूसरों को मदद  करने में वह खुद  ऋणी हो गए थे। उनके कहने का मतलब यह था कि जिसका है मैं उसी को लौटा रहा हूँ। मैं तो निमित्त मात्र हूँ। वह कृष्ण के अनन्य भक्त थे। 
धन दौलत को उन्होने सौतेले भाई को दे दिया , उनकी पत्नी व और लोगों ने बटवारे के लिए कहा परंतु उन्होने कहा मैं तो भाई को  ही दे रहा हूँ। मैंने अपने हाथों से कागज पर हस्ताक्षर किए हैं कोई दूसरा नहीं। अपने और अपने भाई के बीच में दौलत की दीवार नहीं खड़ी करना चाहता। प्रेम तो प्रेम है वह अटूट है उसमें कोई दरार न डाले।
एक सेठ ने आकर कहा  भारतेन्दू तुमको तुम्हारे काले कारनामों के कारण लोग  याद रखेंगे। तुम तो धन को लुटा रहे हो तुम्हारा क्या है सब कुछ तो तुम्हारे भाई का है क्यों बर्बाद कर रहे हो।सेठ ने इतना धिक्कारा कि  भारतेन्दू हरीशचंद घर का परित्याग कर देते हैं। मुनीम और नौकरउनको बहुत रोकते रहे जो उनके वास्तविकता में सगे थे। उन्होने कहा कि आज से हरीशचंद दरिद्र हो गया। काशी में उन्होने बंगाल के अकाल पीड़ितों की जीवन रक्षा के लिए भिक्षा मांगी। काशी में हलचल हो गई। उनका हृदय इतना द्रवित हो गया था कि चीत्कार कर सबसे धन देने की अपील की अपने लिए नहीं दूसरों के लिए।
वह हृदय क्या जो भरा नहीं भावों से उसका हृदय तो पत्थर का टुकड़ा है। उन्होने नारी जाति के उत्थान के लिए नारी-शिक्षा पर ज़ोर दिया। जिस तरह से विदेशी औरतें अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलती हैं उसी तरह से भारत की नारी भी हों इसी लिए अङ्ग्रेज़ी शिक्षा के भी हिमायती थे। उन लोगों का ही यह प्रयास है कि आज भारतीय नारी शिक्षा समेत हर क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर रही है। वेश्याओं के लिए भी उनके हृदय में मान था- इज्ज़त थी। 
महज़ पाँच-दस वर्ष की  छोटी सी उम्र में ही माँ और पिता के मर जाने से ही किसी की विद्वता नहीं मरती है।उनके अच्छे संस्कार नहीं मरते हैं। साहित्य के क्षेत्र में उनका अतुल्य योगदान है। इन्हीं कारणों से उनके संस्कार और संस्कृति , साहित्य देश काल और समाज में आज भी जीवित हैं जो हम लोगों को प्रेरणा देते हैं। इसी लिए कहा गया है-'साहित्य समाज का दर्पण है' । कुछ लोग चले जाते हैं लेकिन हृदय पर ऐसी लकीर छोड़ जाते हैं जो कभी नहीं मिटती वह अमिट है।  

Saturday 1 August 2015

" जइसन उनकर दिन लौटल वईसन सबकर दिन लौटे ।" :प्रेमचंद हमारे देश-काल-परिस्थिति में आज भी जीवित हैं --- पूनम

कल हम लोग 'उमानाथबली' प्रेक्षागृह में IPTA और प्रलेस के संयुक्त तत्वावधान में दो नाटकों का मंचन देखने गए थे।प्रेमचंद की दो कहानियों पर ये दो नाटक थे। पहला था-'पंच परमेश्वर'   और दूसरा 'शूद्र' । सुमन श्रीवास्तव का बच्चों द्वारा जो कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया वह बड़ा सराहनीय था । बच्चे ही तो भविष्य के कर्ण धार हैं। हमारे आफिस की मैडम सरजू बाला प्रसाद कहती थीं -" बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं जिस रूप में ढाल दो वे ढल जाएँगे। " अगर इस प्रयास को हम सभी मिल कर करें तो बहुत सारे बच्चे पढ़-लिख जाएँ। पर क्या आज के जमाने में सबके पास ऐसा दिल है? 
नाटक -'पंच परमेश्वर' :
हिन्दू-मुसलमान दो धर्म का समन्वय दिखाया गया है। उसमें दिखलाया गया है कि 'पंच' न हिन्दू होता है न मुसलमान उसके मुंह से निकली बोली ही न्याय है।वह खुदा है-परमेश्वर है वह कभी गलत नहीं करेगा। जीवन मे खुदा का न्याय ही सर्वोपरि है। यहाँ झूठ की कोई सरकार नहीं है। इस कहानी के माध्यम से आज भी सभी जनों को जाति- धर्म से ऊपर उठ कर इंसानियत और भाई चारे का संदेश मिलता है। अगर वास्तव में ऐसा हो जाये तो कोई अन्याय हो ही नहीं। न कोई अमीर होगा न कोई गरीब होगा। सबको सबकी मेहनत के अनुसार वाजिब हक मिलेगा। न कोई भूखा होगा और न कोई नंगा होगा। इसलिए परमेश्वर के न्याय में विश्वास रखना चाहिए। 

नाटक-'शूद्र' :

यह नाटक पूर्ण रूप से नारी के ऊपर केन्द्रित है। एक अच्छे- भले घर की नारी को किस तरह से छ्ला जा रहा है। वह अपने पति के प्रेम में हर समय लीन रहती थी। बूढ़े ब्राह्मण ने आकर छ्लावा किया। उसने कहा कि मैं तुम्हें तुम्हारे पति के पास छोड़ आऊँगा उन्होने तुम्हें बुलाया है। एक दिन के बाद उसकी माँ आने वाली थीं और बकरियाँ थीं। लेकिन बूढ़े ब्राह्मण ने ठग कर कलकत्ता का लालच दिया और वहाँ जाने पर उसे उसका पति नहीं मिला। फिर उसने जहाज़ से विदेश भेज दिया। जहाज़ में 'शेफाली' नामक अच्छी भली नारी की मुलाक़ात 'गौरी' से हुई। उसने बूढ़े ब्राह्मण की सारी कहानी बताई कि यह सबको ठगता है। वह इन्सानों को बेचता है। विदेश में गौरी की मुलाक़ात अपने पति मंगरू से हुई। उसे लगा कि अब उसे जन्नत ही मिल गया। जब मंगरू ने वहाँ की सारी दास्तानें बताईं तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई । जब मंगरू से एजेंट ने कहा कि या तो गौरी को दो या शेफाली को दोनों में से एक मेरी है। उसने कहा कि एक मेरी बहन है, एक मेरी बीवी है । मंगरू एजेंट से रहम की भीख मांग रहा था । एजेंट ने अपनी कोठी पर बुला कर मंगरू की ज़बरदस्त कोड़े से पिटाई की। उसके कराहने की आवाज़ गौरी के कानों तक पहुंची । अपने पति को छुड़ाने के लिए एजेंट के पास गई। और उसने एजेंट को उसकी माँ का वास्ता देकर सही रास्ते पर लाया। एजेंट भी सुधर गया । इससे यह भी पता चलता है कि यदि खतरनाक से भी खतरनाक व्यक्ति को सही ढंग से सुधारा जाये तो वह सुधर जाता है। फिर एजेंट ने मंगरू का इलाज करवाया। परंतु मंगरू तो गौरी को गलत समझ रहा था। वह गौरी का वरन नहीं कर रहा था। 

परंतु अंत में पति से दुत्कार के बाद सम्मान पूर्वक स्वतंत्र जीवन जीने की मांग गौरी ने एजेंट से की जिसे उसने मान लिया। गौरी और शेफाली ने जिस प्रकार विपरीत परिस्थितियों में अपने सम्मान की रक्षा की उसी तरह से हर नारी को करना चाहिए , घबड़ाना नहीं चाहिए। 

 कहानी  खत्म होने पर हमारी दादी कहती थीं-"  जइसन उनकर दिन लौटल वईसन सबकर दिन लौटे ।"