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Sunday 17 April 2016

उसकी तलाश

बरस बीते दिन बीते सुबह हुई शाम हुई । जीवन कट रहा था। जीवन में अंधेरा ही अंधेरा था। चारों तरफ कालिमा थी। कुछ सूझ नहीं रहा था । करें तो क्या करें हर तरफ से लांछन ही लांछन था जीवन में । कहीं से कोई सहारा नहीं था। अब तो लग रहा था जीवन खत्म ही होने वाला है। कहीं कुछ भी नहीं । जैसे अंधेरे कुएं में और ज्यादा अंधेरा था। अंधकार ही अंधकार चारों तरफ था। सही - गलत का फैसला था ही नहीं। हर वक्त गलत का ही बोलबाला था। गलत की चादर में लिपटा हुआ था जीवन। ऐसा लग रहा था मौत का ही सहारा हो। वही सबसे बड़ा सहयोगी हो।

परंतु अचनाक दिमाग ने कहा कि, जीवन तो अनमोल होता है। क्यों जीवन को खोया जाये। मौत तो एक दिन आएगी मरना तो तय है।अपने सुंदर जीवन की रक्षा की जाये। क्यों इसे बर्बाद होने दिया जाये? तभी दिमाग ने सुंदर सलाह दिया कि, क्यों दिल की बातों को गले से लगा कर रखा जाये? दिल को ठेस लगी दिल तो नाज़ुक होता ही है। दिमाग ने कहा तोड़ दो सारे अविश्वास के दीवार, बाहर निकलो और देखो चारों ओर विश्वास खड़ा है। बाहें फैलाये कुदरत के इस हसीन तोहफे को स्वीकार करो।

निकल पड़ो एक सफर पर जहां न कोई तेरा है न मेरा । जीवन अनमोल है इसलिए दुनिया को कुछ देकर जाओ। और फिर से दुनिया को देखो हसरत भारी निगाहों से। जैसे एक गाना मुझे याद आया - 'एक अंधेरा, लाख सितारे .........................'

क्यों किसी का इंतजार करें, कि आओ और मेरे काम में हाथ बटाओ ? दुनिया तुम्हारी है और भी अच्छे लोगों से भरी पड़ी है। फिर देर किस बात की ? जी भर कर अच्छे काम में जुट जाओ कारवां अपने आप बनते जाएगा। क्यों किसी की तलाश की जाये?
14-12-2015 

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