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Thursday 31 March 2016

गरीबी आउर पढ़ाई -------- पूनम कुमारी

कुछ लोगन के ई परिभाषा हो गईलबा । 'भारत माता की जय' कहे के खातिर। अपना बगली में झांक के इन लोग बाग देखले होहिहे कि इनकर महतारी कइसे रह तारी । महतारी के त एगो गिलास शायद जीवन  भर पानिओ न देले होहीहें पर भारत माता की जय करत तारन। अपना मतारी के धूरछी - धूरछी कइले वाइन पर दुनिया के देखावे के खातिर भारत माता की जय। महतारी बाप से ही दुनिया बा। इ बात समझे में नइखे आवत । 

आज अपना नाम शोहरत के खातिर लोग देश बेच रहल बाड़न   आउर बाट रहल बाड़न। आज दुनिया में देखा रहल बाड़न की जे देश महान आउर सब के     रहल हा  उ देश नाम बरबाद करले बाड़न  लोग । आज देश भर में जे यूनिवर्सिटी अच्छा पढ़ाके छात्र के निकल रहल बा।हर क्षेत्र में कामयाब बा।   ओकर पढ़ाई लिखाई मटियामेट कइले बाड़न लोग।का लड़की का लड़का सब पर लाठी डंडा के प्रहार बा। लड़की सबके पेट पर मारल जा रहल बा। आउर न त बलात्कार के धमकी छात्र लड़की पर बोललू ह त   छात्र तोहर दुर्दशा कर दिहल जाई।गरीब बच्चा सबके पढ़ाई ए न हो सके ऊ सबके टेलेंट मर जा। अमीरवन सबके खाली बचवा सब पढे , खाली गरीब पर राज  करे के खातिर।लेकिन इ सोचे के बात बा कि टेलेंट के न मारे के चाहिं इहे सच्चा माने में देश भक्ति बा। जइसन आपन  बच्चा के सोचे के चाहिँ वैसे दुसरा के बच्चा के सोचें के चाहिँ, गरीब अमीर न लावें के चाहिँ ।   जेतना से जेतना छात्र पढ़ के निकल सके चाहे अमीर, चाहे गरीब ऊ भारत देश के एसेट बा। इ लोग के समझे कि चाहिँ। बुजुर्ग लोग के इ परम करतब बा कि यंग जेनरेशन में अच्छा विचार व भावना भरीं।  गरीबी के कारण बच्चा सब पढ़ नइखे सकत।   

जब देश गुलाम रहे ता सब लोग के एक नारा रहे की देश के आजाद करे के चाही । अब इन लोगन के  ई न नईखे समझ में आवत  कि कोई भी सौ बरस की जिंदगी   लेके नइखे आइल  कोई बढ़िया काम करके दुनिया  से रुखसत होइ कि नाम रहे । सबके अपना पेटे नजर आवत दूसर भूखे रहे चाहे मरे। सबका साथ सबका विकास इ खाली कहे क नारा बा। लोग त आँख रहते आंधर  हो गइल बा  । हमरा त अब छात्र लोगन पर आसरा बा। छात्र हीं दुनिया बदले के ताकत रख रहल बा। हम अंत में ए ही कहब कि छात्र एकता ज़िन्दाबाद । छात्र लोग अपन ताकत  देखा द  दुनिया के सामने । सब बुजुर्ग लोगन के काम बा कि छात्र के उन्नति के अवसर प्रदान करीं । उन लोगन के आगे बढ़े खातिर बढ़ावा/अवसर दी। तभी त रउआ लोग छात्र के कंधा पर चैन आउर सकूँन से अंतिम यात्रा कर सकब। 

सब कुछ छात्र की मुट्ठी में 
तुमे पिला दे पानी घुट्टी में 
मत उसे ललकारो 
अपनी पर आने में 
हो जाएगी तुम्हारी छुट्टी मिनटों में 
सब कुछ है छात्र की शक्ति में । । 

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Sunday 27 March 2016

सीख - जो झगड़े का करे अंत -------- एनिस जहाँ


"एक चुटकी ज़हर रोजाना"
आरती नामक एक युवती का विवाह हुआ और वह अपने पति और सास के साथ अपने ससुराल में रहने लगी। कुछ ही दिनों बाद आरती को आभास होने लगा कि उसकी सास के साथ पटरी नहीं बैठ रही है। सास पुराने ख़यालों की थी और बहू नए विचारों वाली।
आरती और उसकी सास का आये दिन झगडा होने लगा।
दिन बीते, महीने बीते. साल भी बीत गया. न तो सास टीका-टिप्पणी करना छोड़ती और न आरती जवाब देना। हालात बद से बदतर होने लगे। आरती को अब अपनी सास से पूरी तरह नफरत हो चुकी थी. आरती के लिए उस समय स्थिति और बुरी हो जाती जब उसे भारतीय परम्पराओं के अनुसार दूसरों के सामने अपनी सास को सम्मान देना पड़ता। अब वह किसी भी तरह सास से छुटकारा पाने की सोचने लगी.
एक दिन जब आरती का अपनी सास से झगडा हुआ और पति भी अपनी माँ का पक्ष लेने लगा तो वह नाराज़ होकर मायके चली आई।
आरती के पिता आयुर्वेद के डॉक्टर थे. उसने रो-रो कर अपनी व्यथा पिता को सुनाई और बोली – “आप मुझे कोई जहरीली दवा दे दीजिये जो मैं जाकर उस बुढ़िया को पिला दूँ नहीं तो मैं अब ससुराल नहीं जाऊँगी…”
बेटी का दुःख समझते हुए पिता ने आरती के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा – “बेटी, अगर तुम अपनी सास को ज़हर खिला कर मार दोगी तो तुम्हें पुलिस पकड़ ले जाएगी और साथ ही मुझे भी क्योंकि वो ज़हर मैं तुम्हें दूंगा. इसलिए ऐसा करना ठीक नहीं होगा.”
लेकिन आरती जिद पर अड़ गई – “आपको मुझे ज़हर देना ही होगा ….
अब मैं किसी भी कीमत पर उसका मुँह देखना नहीं चाहती !”
कुछ सोचकर पिता बोले – “ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन मैं तुम्हें जेल जाते हुए भी नहीं देख सकता इसलिए जैसे मैं कहूँ वैसे तुम्हें करना होगा ! मंजूर हो तो बोलो ?”
“क्या करना होगा ?”, आरती ने पूछा.
पिता ने एक पुडिया में ज़हर का पाउडर बाँधकर आरती के हाथ में देते हुए कहा – “तुम्हें इस पुडिया में से सिर्फ एक चुटकी ज़हर रोज़ अपनी सास के भोजन में मिलाना है।
कम मात्रा होने से वह एकदम से नहीं मरेगी बल्कि धीरे-धीरे आंतरिक रूप से कमजोर होकर 5 से 6 महीनों में मर जाएगी. लोग समझेंगे कि वह स्वाभाविक मौत मर गई.”
पिता ने आगे कहा -“लेकिन तुम्हें बेहद सावधान रहना होगा ताकि तुम्हारे पति को बिलकुल भी शक न होने पाए वरना हम दोनों को जेल जाना पड़ेगा ! इसके लिए तुम आज के बाद अपनी सास से बिलकुल भी झगडा नहीं करोगी बल्कि उसकी सेवा करोगी।
यदि वह तुम पर कोई टीका टिप्पणी करती है तो तुम चुपचाप सुन लोगी, बिलकुल भी प्रत्युत्तर नहीं दोगी ! बोलो कर पाओगी ये सब ?”
आरती ने सोचा, छ: महीनों की ही तो बात है, फिर तो छुटकारा मिल ही जाएगा. उसने पिता की बात मान ली और ज़हर की पुडिया लेकर ससुराल चली आई.
ससुराल आते ही अगले ही दिन से आरती ने सास के भोजन में एक चुटकी ज़हर रोजाना मिलाना शुरू कर दिया।
साथ ही उसके प्रति अपना बर्ताव भी बदल लिया. अब वह सास के किसी भी ताने का जवाब नहीं देती बल्कि क्रोध को पीकर मुस्कुराते हुए सुन लेती।
रोज़ उसके पैर दबाती और उसकी हर बात का ख़याल रखती।
सास से पूछ-पूछ कर उसकी पसंद का खाना बनाती, उसकी हर आज्ञा का पालन करती।
कुछ हफ्ते बीतते बीतते सास के स्वभाव में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया. बहू की ओर से अपने तानों का प्रत्युत्तर न पाकर उसके ताने अब कम हो चले थे बल्कि वह कभी कभी बहू की सेवा के बदले आशीष भी देने लगी थी।
धीरे-धीरे चार महीने बीत गए. आरती नियमित रूप से सास को रोज़ एक चुटकी ज़हर देती आ रही थी।
किन्तु उस घर का माहौल अब एकदम से बदल चुका था. सास बहू का झगडा पुरानी बात हो चुकी थी. पहले जो सास आरती को गालियाँ देते नहीं थकती थी, अब वही आस-पड़ोस वालों के आगे आरती की तारीफों के पुल बाँधने लगी थी।
बहू को साथ बिठाकर खाना खिलाती और सोने से पहले भी जब तक बहू से चार प्यार भरी बातें न कर ले, उसे नींद नही आती थी।
छठा महीना आते आते आरती को लगने लगा कि उसकी सास उसे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानने लगी हैं। उसे भी अपनी सास में माँ की छवि नज़र आने लगी थी।
जब वह सोचती कि उसके दिए ज़हर से उसकी सास कुछ ही दिनों में मर जाएगी तो वह परेशान हो जाती थी।
इसी ऊहापोह में एक दिन वह अपने पिता के घर दोबारा जा पहुंची और बोली – “पिताजी, मुझे उस ज़हर के असर को ख़त्म करने की दवा दीजिये क्योंकि अब मैं अपनी सास को मारना नहीं चाहती … !
वो बहुत अच्छी हैं और अब मैं उन्हें अपनी माँ की तरह चाहने लगी हूँ!”
पिता ठठाकर हँस पड़े और बोले – “ज़हर ? कैसा ज़हर ? मैंने तो तुम्हें ज़हर के नाम पर हाजमे का चूर्ण दिया था … हा हा हा !!!”
"बेटी को सही रास्ता दिखाये,
माँ बाप का पूर्ण फर्ज अदा करे"
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(चिकित्सकीय ज़िम्मेदारी को पिता ने निभाया और नए तथा पुराने विचारों का तालमेल कराया । क्या इसी तरह से हमारे विश्वविद्यालयों में जो झगड़े चल रहे हैं उसका कोई हल नहीं निकल सकता है?सरकार अगर चाहे तो बुद्धिमतापूर्ण कदम उठा कर सारे झगड़े को खत्म कर दे और बच्चों/छात्रों के माध्यम से एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण करे जिस पर कोई विदेशी उंगली न उठा सके। क्योंकि छात्रों के भीतर बहुत बड़ी शक्ति छिपी होती है जिसे सामने लाने की जरूरत है दफन करने की नहीं । समस्या है तो समाधान हर जगह है।  ) -------- पूनम कुमारी 

Tuesday 8 March 2016

महिला दिवस की शुभकामनायें




चिल्लाना नहीं दूसरे की आवाज़ सुनना चाहिए। 

Monday 7 March 2016

मौन में अर्थ तलाशते 'अज्ञेय '


अज्ञेय के ये विचार आज भी जीवंत व प्रासांगिक  हैं और उन पर गौर किए जाने की आवश्यकता है। 

Thursday 3 March 2016

माँ को नमन ------ पूनम



माँ की पुण्यतिथि(03 मार्च ) पर :


हमारे माता-पिता हम लोगों के निर्माण के लिए कितने तकलीफ और दुख उठाते हैं उसके बाद संतान को सुखी जीवन दे पाते हैं । मेरी माँ ने मेरे लिए बहुत दुख उठाया है और संयुक्त परिवार में ऊपर से काम का बोझ । अब मुझे समझ आता है कि, उनके दिमाग पर कितना बोझ था? पर कभी भी संतुलन नहीं खोया। हमेशा ही हम भाई -बहन के लिए ज़िंदगी को जिया। कभी उफ तक नहीं किया। मेरी माँ को शत-शत नमन। :हम भाई-बहन माँ-पिताजी का कहना ज़रूर मानते थे।